कैम्पटी : टिहरी जनपद के विकासखण्ड जौनपुर में उत्तराखंड की ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर मौण मेला इस बार कोरोना महामारी को लेकर आयोजित नहीं किया गया। इस मौण मेले में क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों के साथ देश विदेश से मौण मेले को बनाने के लिये आने वाले लोग भी मायूस है। बता दे कि यह फैसला मौण मेला समिति द्वारा आयोजित बैठक में लिया गया है उनकी माने तो मौण मेले में हजारों की संख्या में ग्रामीणों के साथ पर्यटक नदी में मछलियों को पकडने के लिये उतरते है जिसमें में ना तो सोशियल डिस्टेंसिग बन पायेगी और ना ही कोविड-19 के नियमों का पालन हो पायेगा।
बता दें कि 1866 से लगातार इस मेले का आयोजन किया जाता था जिसमें ग्रामीण हजारों की तादात में अपने पारंपरिक वाद्ययंत्रों और मछली पकड़ने के साधन के साथ अगलाड़ नदीं में मछलियों को पकड़ने के उतर जाते थे और यह दृश्य काफी मन को मोहने वाला होता था। मेले से पहले यहाँ अगलाड़ नदी में टिमरू के छाल से निर्मित पाउडर डाला जाता है, जिससे मछलियां कुछ देर के लिए बेहोश हो जाती हैं। इसके बाद उन्हें पकड़ा जाता है। हजारों की संख्या में यहां ग्रामीण मछली पकड़ने के अपने पारंपरिक औजारों के साथ उतरते हैं।
मानसून की शुरूआत में अगलाड़ नदी में जून के अंतिम सप्ताह में मछली मारने का सामूहिक मौण मेला मनाया जाता है।क्षेत्र के हजारों की संख्या में बच्चे, युवा और बुजुर्ग नदी की धारा के साथ मछलियां पकड़ने उतर जाते हैं। खास बात यह है कि इस मेले में पर्यावरण संरक्षण का भी ध्यान रखा जाता है। इस दौरान ग्रामीण मछलियों को अपने कुण्डियाड़ा, फटियाड़ा, जाल तथा हाथों से पकड़ते हैं, जो मछलियां पकड़ में नहीं आ पाती हैं, वह बाद में ताजे पानी में जीवित हो जाती हैं।