विधानसभा भवन के लिए कवायद शुरू पर सवाल कायम

0 0
Read Time:8 Minute, 23 Second

अरुण प्रताप सिंह

देहरादून : कई अध्ययनों ने साफ संकेत दिया है कि उत्तराखंड की स्थायी राजधानी के रूप में काम करने के लिए गैरसैंण उपयुक्त नहीं है। इस तरह के अध्ययनों में सबसे उल्लेखनीय अध्ययन न्यायमूर्ति बिरेंद्र दीक्षित के नेतृत्व में गठित राजधानी चयन आयोग था। न्यायमूर्ति बीरेंद्र दीक्षित आयोग ने इस मुद्दे पर तकनीकी और भू-विशेषज्ञों की मदद से इस संबंध में एक विस्तृत अध्ययन किया था।

अध्ययन कई वर्षों तक चला था और भूवैज्ञानिकों, टाउन प्लानर्स, इंजीनियरों, वास्तुकारों, आदि की मदद से कई रिपोर्टें तैयार की गईं। हालांकि 10 साल से अधिक समय पहले सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट पर आज तक कभी खुली सार्वजनिक चर्चा नहीं हो पाई है। वजह केवल राजनीति है। हालांकि, इस तरह के अध्ययनों के बावजूद, गैरसैंण पर राजनीति जारी है और सत्ता पक्ष और विपक्षी दल, सभी इस मुद्दे के साथ फुटबॉल खेलना जारी रखे हुए हैं।

शुक्रवार को  राज्य विधानसभा के स्पीकर प्रेम चंद अग्रवाल ने देहरादून के रायपुर में लंबे समय के लिए प्रस्तावित नए विधानसभा भवन को लेकर प्रगति की समीक्षा शुरू की। काफी सालों पहले ही इस के लिए रायपुर में भूमि आवंटित की गई थी, लेकिन इस पर कोई कवायद आगे इसलिए नहीं बढ़ पाई क्योंकि सत्ता दल व विपक्षी दल, सभी इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट स्टैंड न लेते हुए राजनीतिक फुटबॉल खेलते रहे हैं।

सत्तारूढ़ दल को भी इसके लिए विशेष रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है क्योंकि काफी समय तक ठंडे बस्ते में पड़े गैरसैंण के मुद्दे को अचानक ही झोले से बाहर निकाल कर त्रिवेंद्र सिंह सरकार ने गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की अधिसूचना जारी की थी। मगर इसके बावजूद भाजपा सरकार राज्य की स्थायी राजधानी पर एक स्टैंड लेने में विफल रही है। इसलिए देहरादून उत्तराखंड की अंतरिम राजधानी बना हुआ है और जब तक इसे स्थायी राजधानी घोषित नहीं किया जाता है या जब तक कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित नहीं किया जाता है, तब तक यह राज्य की एक अंतरिम राजधानी ही बनी रहेगी!

वर्तमान में, विधानसभा भवन वास्तव में कुशलतापूर्वक विधान भवन के रूप में कार्य करने के लिए स्थान और बुनियादी ढाँचे की बहुत कमी है। उल्लेखनीय है कि नवंबर 2000 में उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद, देहरादून को राज्य की अंतरिम राजधानी बनाया गया था। रिस्पना पुल के पास स्थित विकास भवन को एक विधानसभा भवन में परिवर्तित कर दिया गया, जबकि सचिवालय की स्थापना सुभाष रोड पर विधानसभा भवन से लगभग तीन किमी की दूरी पर की गई थी, और वास्तव में यह जगह भी राज्य सचिवालय के परिसर के लिए अपर्याप्त थी! यह भी सनद रहे कि सचिवालय भवन पहले एक आईटीआई परिसर था जिसे अलग राज्य के रूप में उत्तराखंड बनने के बाद कहीं और स्थानांतरित कर दिया गया था।

चूंकि राजनीति ने किसी भी सरकार को राजनीतिक विचारधारा के बावजूद स्थायी राजधानी पर स्पष्ट रुख अपनाने की अनुमति नहीं दी, इसलिए देहरादून को लगातार भारी नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि उत्तराखंड के सबसे बड़े और सबसे परिपूर्ण शहर होने के कारण इसे राज्य की राजधानी होने का भार तो उठाना पड़ा, लेकिन स्थायी राजधानी न बन पाने के कारण देहरादून को केंद्र की ओर से राज्य की राजधानियों के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए मिलने वाली केंद्रीय निधियों से वंचित रहना पड़ा।

हालाँकि, वर्तमान विधान भवन और वर्तमान सचिवालय में जगह की भंयकर कमी ने सरकार को विधानसभा की नई इमारत के साथ-साथ सचिवालय के लिए नई इमारत के निर्माण के लिए अधूरे मन से ही सही पर कुछ कवायद शुरू करने को मजबूर तो जरूर किया। नतीजतन विधानसभा और राज्य सचिवालय के संयुक्त परिसर के निर्माण के लिए देहरादून के रायपुर क्षेत्र में रायपुर और भोपालपानी के बीच लगभग 60 हेक्टेयर वन भूमि का चयन किया गया। यही नहीं, 2012 में इसके लिए 75 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की गई थी। लेकिन मुद्दे की राजनीतिक संवेदनशीलता के कारण, इस संबंध में कोई और कवायद या कार्रवाई नहीं देखी गई।

मगर जब वर्तमान सरकार द्वारा अचानक से गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया, तो सरकार के लिए देहरादून को स्थायी राजधानी घोषित कर देना एक स्वाभाविक व उचित कदम होता, मगर सरकार हिचक गई। सरकार, सत्ता पक्ष भाजपा और साथ ही सरकार की ओर से संकोच मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस के भीतर भी बहुत स्पष्ट है।

गैरसैंण का मुद्दा शनिवार को फिर से चर्चा का विषय बन गया, क्योंकि शुक्रवार को ही विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर रायपुर में विस भवन से संबंधित कार्य की प्रगति की समीक्षा की। इस मुद्दे पर अपना खुद का रुख साफ किए बिना, कांग्रेस ने शनिवार को मांग की कि सरकार राज्य की स्थायी राजधानी के संबंध में अपना रुख घोषित करे! तकनीकी रूप से कहें तो, कांग्रेस का सरकार से इस तरह का सवाल करना बनता है क्योंकि यह जिम्मेदारी सरकार की ही है कि वह इस मुद्दे पर भ्रम को शीघ्र दूर करे।

इस बीच, अग्रवाल के अनुसार, उन्हें सूचित किया गया कि रायपुर में चयनित वन भूमि के हस्तांतरण के लिए वन विभाग को सात करोड़ रुपये दिए गए थे। उन्होंने कहा कि जिस जमीन का चयन किया गया था उसमें एलीफैंट कॉरिडोर भी है। इसके रि-अलाइनमेंट के लिए, 15.37 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि गलियारे की प्राप्ति के लिए वन विभाग को दी जानी है और इसके बाद ही, निर्माण कार्य को केंद्र द्वारा अनुमोदित किया  जा सकेगा।

About Post Author

Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %
WhatsApp Image 2022-11-11 at 11.45.24 AM

Related Posts

Read also x