कविताओं, कहानियों व चित्रों का विशेषांक : लोकसंहिता टीवी
अब क्या होना है
अब क्या होना है
अब क्या होना है
चारों ओर कोरोना है
हाहाकार चीत्कार
बंद गली, बंद बाजार
ऊजंदगी जीना नहीं
सिर्फ ढोना है…..अब क्या होना है
इंजीनियर क्या डॉक्टर
पुलिस क्या मास्टर क्या
मास्क लगा मुंह
दिखता कुछ नहीं
हँसता है कौन, लगा कौन रोना है
ऊववाह न हो, बारात मिले
महकी खुशी से कोई रात मिले
झूम उठे मन मयूर
खिल उठे फिर चमन
मन वीणा के तार बजे
शहनाई मूंदग सजे
बच्चो की किलकारियाँ
त्योहारों की तैयारियां
गरम गरम पूरियां
तैरेंगी कब कड़ाही में
हलवाई के हाथ
सनेगे कब मिठाई में
हाथों ग्लब्ज, सैनेटाईज लगा
अब क्या खाये
यही तो रोना है।……..अब क्या
चीन तेरा सत्यानाश
फेल हो हमेशा
न हो कभी पास
ड्रेगन, ड्रेक्युला कही का
छछूंदर चमगादड़
खाता रहा।
वुहान लैव करोना की
संजाता रहा
झुलाकर मौत का झूला
तू मुस्कराता रहा
मरेगा जब तू न मुझे भी मिलेगा
नदी का किनारा
न सागर का एक कोना है……..अब क्या
बस नहीं रेल नहीं
आना नहीं जाना नहीं
मन का कुछ खाना नहीं
बिगड़ा जाता रूप
जो था कभी
सलोना है……अब क्या
ऑनलाइन फोन लाईन
नेटवर्क डेड लाईन
यही सुनते रहो
ख्वाब बुनते रहो सोचोगे जो
वह न कभी होना है……अब क्या
डॉ0 राम आसरे कौशल
प्रधानाचार्य
राइकॉ चौंरा थलीसैंण