विनय कुमार
फतेहपुर जिले में सरकारी गैर सरकारी जमीनों में अवैध कब्जे किसी नासूर से कम नहीं है। यहां जिला मुख्यालय सहित कस्बा एवं गांवों की जमीनों पर कब्जे के मामले आते ही रहते हैं। विवादित जमीनों पर कब्जे को लेकर भू माफियाओं के साथ सत्ताधारियों की जुगलबंदी सदा से रही है और इसी का नतीजा रहा है कि अवैध कब्जों का यह खेल लंबे समय से बदस्तूर जारी है। अकेले फतेहपुर शहर की अगर बात की जाए तो पूर्ववर्ती सरकारें बदनाम तो रहीं ही साथ ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार में भी जमीन कब्जे के कई मामले सामने आए हैं और इनमें सत्ता से जुड़े लोगों का सीधे दखल रहा है।
मामला सत्ता से जुड़ा होने के चलते पीड़ित न्याय की गुहार में दर-दर भटकते रहे और पुलिस उसे न्याय देने के बजाय बैकफुट पर रही और प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सत्ताधारी नेताओं के इशारों पर नाचती रही। इसका नतीजा रहा कि लोगों की जमीनों पर कब्जे होते रहे और इनके गुनहगार मौज में घूमते रहे। शहरी क्षेत्रों में तालाबी नंबरों को पाटकर भू माफियाओं ने प्लाटिंग कर दी और वहां आलीशान भवन खड़े हो गए तो एक विधायक के गुर्गों ने कई विवादित जमीनों पर निगाह गड़ाई तो उन्हें हथियाने के बाद ही दम लिया। जिन दो मामलों का जिक्र खबर में किया जा रहा है उस पर गौर करना इसलिए भी वाजिब है कि जमीनी विवादों पर पुलिस सदा ही संदिग्धता के घेरे में रही है।
जमीन कब्जा करने वालों की शिकायतें तो होती रहीं लेकिन पुलिसिया सांठगांठ से उन्हें न्याय नहीं मिल पाया।झक मार कर या तो भू माफियाओं को पीड़ित ने अपनी जमीनें दे दिया या फिर चुपचाप बैठने को मजबूर हो गया। राजस्व कर्मियों की भूमिका भी संदिग्धता के दायरे में रही है। शहरी क्षेत्र की सरकारी जमीनों को खोज कर भू माफियाओं को देने का काम राजस्व कर्मी करते आ रहे हैं ।भू माफिया सत्ताधारियों के साथ मिलकर जमीनों को कब्जा करने का खेल खेल रहे हैं और मोहकमा इन पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है।
गौर करने वाली बात एक और है कि जिन जमीन के मामलों में पुलिस को लोगों की शिकायत सुनने तक का समय नहीं रहता है आखिर ऐसी कौन सी वजह रही कि रात के अंधेरे में ही पुलिस ने स्वयं खड़े होकर निर्माण कार्य को करा दिया। खाकी की इस मेहरबानी पर आम जनता को उसे शक के दायरे में भला क्यों नहीं रखना चाहिए? भले ही इस मामले में पुलिस की मंशा पीड़ित को न्याय देने की रही हो लेकिन जिस तरह से इस प्रकरण में पुलिस ने तेजी दिखाई क्या यही तेजी आम गरीब पीड़ितों के लिए भी उसकी रहती है? जिस तरीके से न्याय दिलाने की मंशा इन मामलों में पुलिस ने दिखाई वही अगर आम गरीब जनता के साथ दिखाना शुरू कर दे तो जमीन के आधे से ज्यादा विवाद तो मौके से ही निपट कर बाहर हो जाएं लेकिन आम जनता के मामलों में पुलिस का कार्रवाई करने एवं न्याय दिलाने का नजरिया ही बदल जाता है।थोड़े से लालच में पुलिस का चेहरा बदलता नजर आता है और आम आदमी परेशान तो भू माफिया व दबंग मनमानी करते नजर आते हैं।
माफियाओं से जुगलबंदी का पुलिस का खेल चलता रहता है यहां भी इसके बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे जहां पीड़ित के साथ खड़े होने के बजाय खाकी भू माफियाओं के साथ खड़ी हुई और नतीजा माफियाओं के पक्ष में गया। जिला प्रशासन द्वारा पूरे जनपद में भू माफियाओं एवं अवैध कब्जों को लेकर भले ही अभियान चला रखा हो लेकिन चिन्हित भूमाफियाओं पर कोई कार्रवाई ना होना भी सवाल खड़ा करती है!योगीराज में जिस तरह से भ्रष्टाचार व भू माफियाओं का राज चल रहा है इससे सरकार की मंशा भले ही इसके खात्मे की हो पर इन हालातों में यह संभव हो पाएगा या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन भू माफिया-खाकी एवं सत्ताधारी नेताओं की जुगलबंदी ने आम जनता के लिए न्याय के दरवाजे बंद कर रखे हैं।अब देखना यह है कि इनके खिलाफ जिलाधिकारी संजीव सिंह का चल रहा अभियान एक्शन में कितना आ पाता है।