देहरादून : उत्तराखंड के 150 से अधिक लोग अभी भी अंडमान के द्वीपों में कई दिनों से फंसे हुए हैं, लेकिन राज्य सरकार ने अब तक उनसे संपर्क करने और राज्य में वापस आने में उनकी मदद करने का कोई प्रयास नहीं किया है।
लोकसंहिता से बात करते हुए, देहरादून के विनोद सजवाण ने शनिवार को बताया कि अंडमान द्वीपों पर वह स्वयं ही उत्तराखंड के कम से कम पचास युवकों को नौकरी दिला चुके हैं पर अब होटल बंद हो जाने के कारण सबकी नौकरियों पर बन आई है। सबका भविष्य अनिश्चित हो गया है और वे सब यहां से जल्द से जल्द घर वापसी करना चाहते हैं। होटलों से उन्हें भोजन तो मिल रहा है पर वेतन मार्च के बाद नहीं मिला है। सजवाण ने बताया कि उन्होंने उत्तराखंड की हेल्पलाईन पर कई बार संपर्क कर राज्य के यहां पर फंसे लोगों की समस्या बताई थी पर मदद के कोरे आश्वासन के अलावा अभी तक कुछ भी ठोस मदद नहीं मिली है।
मूल रूप से जिला टिहरी के रहने वाले जगवीर पुंडीर ने शनिवार को इस बात की पुष्टि की कि उत्तराखंड सरकार से किसी ने भी उत्तराखंड के फंसे हुए लोगों से संपर्क नहीं किया है, बावजूद इसके कि कुछ मीडिया प्रकाशनों ने उनकी दुर्दशा पर खबरें प्रकाशित की थीं! इन व्यक्तियों में से अधिकांश अंडमान के विभिन्न द्वीपों में विभिन्न होटलों और रिसॉर्ट्स में होटल उद्योग में काम करते हैं लेकिन अपनी नौकरी खो चुके हैं और पैसे से बाहर भाग रहे हैं। जब लॉकडाउन शुरू हो गया और सभी घरेलू उड़ान संचालन बंद हो गए, तो पर्यटन केंद्रित द्वीपों के इस समूह अंडमान निकोबार के होटलों को भी बंद करना पड़ा। परिणामस्वरूप, भारत के अन्यत्र स्थानों से आए भारत के लगभग 4000 लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है। चूंकि उड़ानें नहीं चल रही थीं और परिवहन का कोई साधन उपलब्ध नहीं था, इसलिए वे फंसे ही रहे। इन व्यक्तियों में से अधिकांश को उनका उचित वेतन भी नहीं मिला है और उनमें से कई को केवल मार्च तक का वेतन मिला है। कुछ को तो मार्च महीने का वेतन भी नहीं मिला। हालांकि, होटल और रिसॉर्ट्स ने अब तक इन व्यक्तियों को अपने संबंधित मूल स्थानों पर लौटने तक बने रहने की अनुमति दी है। जिला हरिद्वार के पथरी गाँव के इस संवाददाता अंकित रावत से बात करते हुए उन्होंने बताया कि वह पोर्ट ब्लेयर से लगभग 2 घंटे की दूरी पर एक होटल में काम कर रहे हैं और उनकी जानकारी के अनुसार उत्तराखंड के 150 से 200 लोगों के बीच फंसे हुए हुए हैं। हालाँकि उन्होंने कहा कि उनके बीच नियमित संचार सुलभ नहीं रहा क्योंकि उनमें से अधिकांश विभिन्न द्वीपों और विभिन्न स्थानों में काम करते हैं और सरकारी नौकाएं ही उनके लिए परिवहन का एकमात्र साधन हैं। इसलिए सबका नियमित रूप में मिलना संभव नहीं हो पाता।
उत्तराखंड के अधिकांश फंसे हुए लोगों ने अपनी वापसी के लिए खुद को पंजीकृत कर लिया है और वे उम्मीद कर रहे हैं कि 25 मई से उड़ानें फिर से शुरू होंगी। अधिकांश लोग जो इन द्वीपों में फंसे हुए हैं चाहे उत्तराखंड के हों या भारत के किसी अन्य राज्य से, वापस लौटने की इच्छा रखते हैं। क्योंकि वे कहते हैं कि पर्यटन देश में और यहां तक कि उन द्वीपों में भी जल्द शुरू नहीं होने जा रहा भले ही अंडमान में कोरोना का एक भी केस नहीं है और यह द्वीप समूह एक ग्रीन ज़ोन है।
हालाँकि, बड़ा सवाल यह है कि उत्तराखंड सरकार से किसी ने भी उनके साथ कोई संवाद स्थापित करने और विशेष रूप से उनकी मदद करने का प्रयास क्यों नहीं किया, जबकि राज्य के मीडिया में इन व्यक्तियों के संबंध में खबरें प्रमुखता से प्रकाशित हुई थीं? हकीकत यही है कि अंडमान तथा देश में कहीं और फंसे राज्य के लोगों के साथ संपर्क स्थापित करने व उनकी मदद के लिए राज्य प्रशासन में कोई सक्रियता नहीं दिखाई दे रही है।
अरुण प्रताप सिंह की खास रिपोर्ट ……….