देहरादून : उत्तराखंड सरकार द्वारा देवस्थानम बोर्ड के गठन के खिलाफ भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सोमवार को अंतिम सुनवाई शुरू की। कोर्ट द्वारा सुनवाई ऑनलाइन आयोजित की गई थी। सुनवाई के दौरानबीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने वकील मनीषा भंडारी के माध्यम से अपने तर्क कोर्ट के सामने प्रस्तुत किए और राज्य सरकार की ओर से सचिव पर्यटन और धार्मिक मामलों दिलीप जावलकर द्वारा दायर मामले पर काउंटर के खिलाफ बिंदुवार तर्क व्यक्त किए। सरकार मंगलवार को स्वामी द्वारा पेश किए गए तर्कों पर जवाब देगी। इसके बाद एक बार फिर याचिकाकर्ता होने के नाते सुब्रह्मण्यमस्वामी को ही अंतिम तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा और तत्पश्चात, कोर्ट द्वारा शीघ्र ही इस मसले पर फैसला सुना दिए जाने की उम्मीद है। सूत्रों ने दावा किया कि इस मामले में अंतिम फैसला मंगलवार को ही या इस हफ्ते में किसी भी दिन आ सकता है।
उल्लेखनीय है कि सुब्रह्मण्यम स्वामी ने राज्य में कुल 51 हिंदू तीर्थस्थलों के लिए देवस्थानम बोर्ड स्थापित करने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है. सनद रहे कि देवस्थानम बोर्ड के जरिए मुख्य चार धाम मंदिरों जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धामों सहित कुल 51 हिंदू मंदिरों का नियंत्रण सरकार के हाथ में आ गया है। अधिनियम के अनुसार, मुख्यमंत्री बोर्ड के पदेन अध्यक्ष बन गए हैं। यह आगे भी याद किया जा सकता है कि स्वामी ने अतीत में भी विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा हिंदू मंदिरों के अधिग्रहण के खिलाफ इसी तरह के मामले दर्ज किए थे और मामलों में जीत भी हासिल की थी।
याद रहे कि स्वामी ने 22 जून को राज्य सरकार की दलीलें और राज्य सरकार की अपील के खिलाफ बिंदुवार जवाब दाखिल किया था। उधर सरकार की ओर से सचिव पर्यटन दिलीप जावलकर ने अपने हलफनामें में स्वामी पर इस मुद्दे पर राजनीति करने का आरोप लगाया था और उनके केस को खारिज करने की कोर्ट से अपील की थी। हालांकि विधि विशेषज्ञों का दावा है कि सरकार का हलफनामा कमजोर था और स्वामी के आरोपों का बिंदुवार जवाब या सफाई देने में नाकामयाब है। दूसरी ओर स्वामी ने इस हलफनामें पर 22 जून को दाखिल अपने जवाब को बिंदुवार ढंग से प्रस्तुत किया था।
सोमवार को हई सुनवाई मेंस्वामी का तर्क था कि सरकार ने गलत तरीके से आरोप लगाया था कि उन्होंने(स्वामी ने) किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत मामला दर्ज किया था और आगे कहा कि मुकदमा सैद्धांतिक आधार पर किया गया है और ऐसे मामलों में वह अन्य राज्यों में भी इस तरह के केस दायर कर चुके स्वामी ने उनकी याचिका पर राज्य सरकार को जवाब देने के लिए बिंदु-दर-बिंदु खंडन किया है। स्वामी ने तर्क दिया कि लाखों तीर्थयात्री बिना किसी शिकायत या समस्याओं के हर साल यहां पर तीर्थाटन करते हैं। इसलिए राज्य सरकार के इस तर्क में दम नहीं है कि तीर्थयात्रियों को मंदिरों के पुजारियों लूटा जा रहा था। अगर यह सच भी होता तो सरकार से इस मामले पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई तो की नहीं है। स्वामी ने उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय किए गए समान मामलों का भी हवाला दिया जहां अदालतों ने ऐसे अधिग्रहण को अन्यायपूर्ण घोषित किया था।
उम्मीद है कि सरकार मंगलवार को अपने तर्क सामने रखेगी। इसके बाद एक बार फिर स्वामी को अंतिम रूप से अपनी बात रखने का अवसर मिलेगा जिसके बाद कभी भी कोर्ट इस मसले पर अपना फैसला सुना सकती है।