देहरादून : उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल 27 जुलाई से पहले कभी भी देवस्थानम बोर्ड मामले में अपना फैसला सुना सकता है। विधि विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी संभावना इसलिए भी है इस केस की सुनवाई करने वाले मुख्य न्याय़ाधीश जस्टिस रमेश रंगनाथन आगामी 27 जुलाई को अवकाश ग्रहण कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इस मामले में सुनवाई पहले ही पूरी हो चुकी है और फैसला 6 जुलाई को ही सुरक्षित रख लिया गया है। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली पीठ ने की और इसमें न्यायमूर्ति रमेश खुलवे भी शामिल थे।
न्यायमूर्ति रंगनाथन 27 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने वाले हैं और उनकी जगह न्यायमूर्ति रवि विजयकुमार मलीमथ फिलहाल उत्तराखंड हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे। वह वर्तमान में न्यायमूर्ति रंगनाथन के बाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। वास्तव में, केंद्र ने 28 जुलाई से न्यायमूर्ति मलीमथ को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करते हुए इस संबंध में अधिसूचना भी जारी कर दी है। जब तक सुप्रीम कोर्ट नैनीताल हाईकोर्ट के स्थायी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं करता तब तक जस्टिस मलीमथ कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रहेंगे!
जैसै कि परंपरा है, न्यायाधीश आमतौर पर सुनवाई पूरी होने और फैसला सुरक्षित रखने के मामले में अपनी सेवानिवृत्ति से पहले उनके द्वारा सुनाए गए सभी मामलों का निर्णय सुना देते हैं। अन्यथा मामले की फिर से सुनवाई हो सकती है। इसलिए कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, देवस्थानम बोर्ड में फैसला अगले हफ्ते या 27 जुलाई से पहले किसी भी दिन होने की संभावना है। यह उल्लेखनीय है कि सुब्रमण्यम स्वामी इस मामले में याचिकाकर्ता हैं। स्वामी का प्रतिनिधित्व नैनीताल में वरिष्ठ अधिवक्ता मनीषा भंडारी ने किया था। कोविड-19 प्रतिबंधों के कारण सुनवाई ऑनलाइन आयोजित की गई थी।
यह भी स्मरणीय है कि जहां विभिन्न उच्च न्यायालयों ने देवस्थानम बोर्ड मामले के समान मामले में काफी अलग-अलग तरह के फैसले सुनाए हैं, वहीं सर्वोच्च न्यायालय आमतौर पर हिंदू श्राइनों के सरकारी नियंत्रण के खिलाफ निर्णय लेने में काफी सुसंगत रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किया जाने वाला ताजा मामला केरल का पद्मनाभ मंदिर है जहां भी स्वामी ही मुख्य याचिकाकर्ता थे। इस बीच स्वामी के करीबी सूत्रों ने दावा किया कि वह दक्षिणी राज्यों में कई अन्य मंदिरों के सरकारी अधिग्रहण के संबंध में भी मामले दर्ज करने की तैयारी कर रहे हैं। पद्मनाभ मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी फैसला दिया था कि केवल हिंदुओं को ही हिंदू मंदिरों की प्रबंध समितियों के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। दक्षिण में, संबंधित राज्य सरकारों द्वारा विशेष रूप से केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में मंदिर प्रबंध समितियों पर कई ईसाई और मुस्लिमों को नियुक्त करने का एक नया सिलसिला शुरू हुआ है।