देहरादून : उत्तराखंड में कोरोना के नए मामलों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। पिछले महीने जब केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा अंतर-राज्यीय यात्रा की अनुमति दी गई थी और प्रवासी राज्य भर में अपने मूल स्थानों को लौट रहे थे, तो मामलों की संख्या में वृद्धि देखी गई थी। तब ऐसा होना स्वाभाविक ही था हालाँकि, तब सरकार ने दावा किया था कि नए मामलों की संख्या प्रवासियों के बड़ी संख्या में लौटने के कारण बढ़ी है और प्रवासियों के लौटने का दबाव कम होने पर ऩए मामलों की संख्या में गिरावट आ जाएगी। हालाँकि ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ है! हालांकि राज्य में लौटने वाले प्रवासियों की संख्या में निश्चित रूप से कमी आई है, नए मामलों की संख्या में वृद्धि जारी है! यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार पर मुंबई आदि कुछ अन्य स्थानों पर फंसे उत्तराखंडियों की वापसी में हीलाहवाली बरतने के आरोप भी लगे हैं और ऐसा एक मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन भी है।
बहराल राज्य सरकार और प्रशासन के साथ-साथ जनता के लिए यह गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए कि न सिर्फ नए मामलों की संख्या बढ़ रही है बल्कि ऐसे मामलों की भी संख्या बढ़ी है जिनमें मरीजों की बाहरी राज्यों से यात्रा का कोई इतिहास नहीं है और उनकी कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग भी नहीं हो पाई है। इसका मतलब है कि ऐसे मामलों में, यह नहीं पता लगाया जा सकता है कि इन लोगों को वायरस संक्रमण कैसे हुआ! आम तौर ऐसा होना इस घातक वायरस के सामुदायिक प्रसार की ओर प्रारंभिक संकेत है जिसे किसी भी सूरत में नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।
इसका ताजा उदाहरण शनिवार को राज्य में दोपहर 2 बजे तक की हेल्थ बुलेटिन में मिलता है। शनिवार दोपहर तक ही राज्य में सौ से अधिक केस सामने आ गए थे। इनमें से 16 मामलों में देहरादून में तथा 21 मामलों में टिहरी में किसी की यात्रा का कोई इतिहास उपलब्ध नहीं है न ही इन मामलों में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग ही हो पाई है। यानि कि पता लगाना मुश्किल है कि इन्हें कैसे संक्रमण हुआ। पिछले कई दिनों से, ऐसे मामले नियमित रूप से सामने आ रहे हैं जिनमें कोई यात्रा इतिहास या संपर्क का पता नहीं लगाया जा सकता है। हालाँकि यह भी सच है कि अधिकांश ऩए मामलों में दिल्ली, मुंबई और कुछ अन्य संक्रमित हॉटस्पॉट शहरों का यात्रा इतिहास है या उन लोगों से प्राथमिक संपर्क की जानकारी है जोकि पूर्व में ही संक्रमित पाए गए थे। इसका अपवाद दीनदयाल उपाध्याय राज्याभिषेक अस्पताल, और अन्य अस्पतालों में डॉक्टरों सहित चिकित्सा कर्मचारी हैं और कोविड अस्पतालों में कोविड रोगियों के संबंध कुप्रबंधन के कारण भी संक्रमण के केस भी हैं। बल्कि शुक्रवार को ही देहरादून में अनेक चिकित्सकों सहित 28 स्वास्थ्यकर्मी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के लिए 2278 से अधिक मामलों का अब तक सामने आ जाना चिंता का विषय है, खासतौर पर जबकि कुछ राज्य पहले से ही नए मामलों के ग्राफ को नीचे लाने में सफल रहे हैं! उदाहरण के लिए हिमाचल उत्तराखंड के समान ही राज्य है मगर वहां पर कोरोना संक्रमण की संख्या उत्तराखंड की तुलना में एक-चौथाई ही है। उत्तराखंड में तो अब तक कोरोना मरीजों की मौत भी हो चुकी है।
वर्तमान स्थिति में पहली चीज जो राज्य को करने की आवश्यकता है, वह है अधिक से अधिक आबादी का मेडिकल सर्वेक्षण और प्रति दिन कोरोना परीक्षणों की संख्या बढ़ाना। बेशक, शुक्रवार को, इस संबंध में एक संकेत सीएम द्वारा दिया गया था। सीएम ने कहा था कि देहरादून, हल्द्वानी और श्रीनगर (पौड़ी) में स्थित तीन प्रमुख प्रयोगशालाओं में दैनिक परीक्षण की क्षमता को बढ़ाकर 2,400 परीक्षण प्रतिदिन किया जाएगा। पर वास्तव में क्षमता का पूर्ण रूप से उपयोग किया भी जाएगा या नहीं यह तो देखना होगा। साथ ही साथ परीक्षणों के परिणामों की जल्द घोषणा सुनिश्चित करना भी जरूरी है क्योंकि राज्य भर में कई मामलों में पाया गया है कि जिन व्यक्तियों का परीक्षण किया गया और वे अपने परिणामों की प्रतीक्षा कर रहे थे, परीक्षण के बावजूद लोगों से मिलजुलते रहे और अन्य लोगों को संक्रमण का संवाहक बन गए। स्मरणीय है कि लंबित रिपोर्टों की संख्या शनिवार तक ही 4,300 से अधिक हो गई है!
बाजारों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर शारीरिक डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित करने में पुलिस और अन्य प्रशासनिक कर्मियों में भी हीलाहवाली देखी गई है। शैक्षिक संस्थानों विशेषकर स्कूलों को खोलने की भी कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए, खासकर जब तक नए मामलों का ग्राफ वास्तव में काफी नीचे नहीं आ जाता है!