संभावनाएं

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सुरेन्द्र गौड़

कोविड-19 की स्वास्थ्य सुनामी ने कई प्रकार की समस्याएं , सरकार तथा जनमानस के सामने खड़ी कर दी हैं। इस संक्रामक बीमारी को फैलने से रोकने के प्रयास में सरकार ने अभूतपूर्व लॉकडाउन किया जिससे लगभग 10 करोड़ कर्मी विभिन्न स्थानों पर फंस गए| केंद्र तथा राज्य सरकारें अपने निर्णय में , संभवतः, ठीक रही हों , मगर मजदूरों तथा अन्य कर्मियों द्वारा अपने घर जाने की उतकंठ इच्छा स्वाभाविक ही थी। उनके द्वारा अपने-अपने घरों में वापस पहुंचने के प्रयासों को मानवीय दृष्टि से ही देखा जाना चाहिए ! यदि उत्तराखंड के संदर्भ में कहा जाए तो हजारों लोग दूसरे राज्यों में तथा कुछ विदेशों में फस गए थे। यहां मैं केवल उन लोगों की चिंता कर रहा हूं जो बेहतर रोजगार की तलाश में उत्तराखंड से बाहर की ओर गए थे। जब सरकार ने ढील देते हुए लोगों को उनके गृह राज्य तक पहुंचाने का प्रयास किया तो पता चला कि लगभग एक लाख लोग उत्तराखंड वापस आना चाहते हैं।

उत्तराखंड के जिन लोगों की किस्मत में आकर्षक नौकरियां हैं वे उचित समय पर वापस जाएंगे। परंतु एक बड़ी संख्या उन नौजवानों की है जो नगरों या महानगरों में छोटी -मोटी नौकरियों में अपना जीवन खपा रहे हैं। मेरा मानना है कि ऐसे लोगों को अपने पैतृक गाँवों में विकल्प आजमाने चाहिए। अपमानजनक नौकरियों में टिके रहने के बजाय पैतृक स्थानों में नई संभावनाओं को जन्म देना उनके लिए, परिवार के लिए , उत्तराखंड राज्य के लिए तथा देश के लिए भी लाभदायक होगा। एक अन्य वजह से भी खेतों और गांवों से जुड़ना आवश्यक लगता है। वर्तमान कोरोना वायरस मनुष्य जनित हो या प्राकृतिक ,एक खतरा लगातार बरकरार रहेगा जिसके बारे में सरकारों , अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं तथा जनमानस को सतर्क रहना होगा! प्राकृतिक वायरसों को नियंत्रित करने , रूपांतरित करने तथा अपनी सुविधानुसार हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए विशाल औद्योगिक संरचनाओं की आवश्यकता नहीं होती।

इस दृष्टि से सोचा जाए तो भविष्य असुरक्षित महसूस होता है। कूटनीति व सामरिक भाषा में दुष्ट राज्यों व गैर- राष्ट्रीय अदाकारों जैसी संकल्पनाये मौजूद है। हमारे देश के आसपास तथा भीतर ऐसी संकल्पनाये ठोस रूप में मौजूद है जो भविष्य में इसी प्रकार के संकट खड़े कर सकते है! आज के समय में गांव व खेती से जुड़ने की सलाह देने वाला व्यक्ति शत्रु वत लग सकता है परंतु यदि शांत भाव के साथ बातों को सुना, पढ़ा तथा समझा जाए तो सभी पक्षों के लिए लाभदायक परिणाम सामने आ सकते हैं।

उत्तराखंड राज्य वैसे तो कृषि के लिए बहुत लाभकारी नहीं माना जाता परंतु वस्तुस्थिति इसके विपरीत है। उत्तराखंड की जलवायु हमें कई प्रकार की संभावनाएं उपलब्ध कराती है। उत्तराखंड में आर्द उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु, शुष्क उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु, शीतोष्ण जलवायु तथा अल्पाइन जलवायु उपलब्ध है। जब कुछ लोग उत्तराखंड को खेती के लिए अनुपयुक्त कहते हैं तो उसमें सच्चाई का अंश अवश्य होता है। यहां की जलवायु परंपरागत कृषि के बजाए वृक्ष खेती अर्थात बागवानी के लिए अधिक उपयुक्त है। उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों में सूक्ष्म अध्ययन करने पर पता चलता है कि यहां लगभग हर मौसम के फल उगाए जा सकते हैं। इस प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर कीवी, कीनू, सेव, केला, आडू, अखरोट , खुमानी , चेरी इत्यादि सफलतापूर्वक उगाए जा रहे हैं। प्रदेश के कई इलाके शहतूत के पौधे लगाने के लिए सर्वथा उपयुक्त पाए गए थे !राज्य में रेशम निदेशालय भी बना था यद्यपि यह अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। उत्तराखंड के विभिन्न जलवायु क्षेत्र भिन्न- भिन्न प्रकार की कृषि संबंधी आर्थिक गतिविधियों के लिए उपयुक्त हैं। उदाहरण के लिए यहां मधुमक्खी पालन बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। यहां के कुछ क्षेत्र खरगोश पालन के लिए उपयुक्त है जो बेहद मुलायम बाल उपलब्ध कराते हैं तथा बाजार में अच्छा पैसा मिलने की संभावना जगाते हैं। खरगोश पालन से संबंधित तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए एक केंद्र भी उत्तराखंड में कार्यरत है।

इन संभावनाओं को, बडे स्तर पर,वास्तविक धरातल पर लाने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत होगी। इसके लिए सरकार तथा निवासियों को मिलजुल कर प्रयास करने होंगे। यहां यह सोचना बेहद आवश्यक है कि लोगों ने कृषि कार्यों को अलविदा क्यों कहा तथा उन्हें घटिया कार्य क्यों समझा? इसके लिए तथाकथित पढ़े लिखे लोगों के उलाहने तथा शिक्षा प्रणाली जिम्मेदार है। गांवों में रहने वाले व्यक्तियों को गंवार ,अनपढ़ तथा अज्ञानी कह-कहकर हीन भावना से ग्रसित कर दिया गया जिससे वह लोग नगरों तथा महानगरों में जाकर शोषित होने में अपनी शान समझने लगे। अब समय आ गया है इस हीन भावना से बाहर निकला जाए। भारत सरकार ने जो ऐतिहासिक लॉकडाउन किया उसे जो भी सफलता मिली वह गांवों की बदौलत ही सफल हो सकी। तथाकथित अनपढ़ तथा गंवार लोगों के दम पर ही शहर के लोग सब्जी, फल तथा अनाज जैसे खाद्य पदार्थ आसानी से पा रहे हैं।

नौजवानों को कृषि संबंधित कार्यों में संलग्न करने के लिए तथा इस क्षेत्र में उत्तराखंड को सक्षम बनाने के लिए उत्तराखंड में सरकार के संबंधित विभागों को अग्रगामी नीतियां बनानी होंगी तथा उन्हें क्रियान्वित करने के लिए गांव तक पहुंचना होगा। लेकिन जन भागीदारी के बिना सरकारी प्रयास कभी भी सफल नहीं हो सकते। नौजवान अपने गांवों में रुके तथा वहां वृक्ष खेती तथा विविध पशुपालन के कार्यों में संलग्न हो इसके लिए आवश्यक है कि वहां स्वास्थ्य तथा शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए। इन दो मूलभूत सुविधाओं के मिलने पर नौजवानों को अपने पैतृक गांवों में रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाना संभव होगा। यदि उत्तराखंड के लोग बागवानी खेती में दिलचस्पी लेने लगे तो उसकी सफलता के लिए बड़ी मात्रा में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना बेहद जरूरी होगी। खेतों तथा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को जोड़ने के लिए सड़क परिवहन का अच्छी स्थिति में होना बेहद जरूरी होगा। जहां तक ज्ञान प्राप्त करने की बात है आज हर व्यक्ति की जेब में वह भरा पड़ा है। जब चाहो अपनी सुविधा, दिलचस्पी, आवश्यकता……… इत्यादि के हिसाब से उस ज्ञान में डुबकी लगा सकते हैं तथा विश्व के साथ सतत संपर्क में रह सकते हैं।

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