भारतीय संस्कृति में पितृ पक्ष-श्राद्ध का महत्व

भारतीय संस्कृति में पितृ पक्ष-श्राद्ध का महत्व
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किशन सनमुखदास भावनानी

भारत में श्रद्धा भाव भक्ति आस्था मर्यादा आध्यात्मिकता सहित हजारों कर्म गुण जिसमें बड़े बुजुर्गों गुरुओं पूर्वजों का सम्मान है, उनकी छत्रछाया हमेशा बनी रहे यह भाव प्राचीन काल से ही ममतामई भारत माता की गोद में रहने वाले हर व्यक्ति में समाया हुआ है जिसकी दुनिया कायल है और यह आस्था देखने हजारों सैलानी प्रतिवर्ष भारत आकर इसके गवाह बनते हैं। चूंकि 11 से 25 सितंबर तक पितृपक्ष श्राद्ध के दिन हैं हालांकि कहीं 10 सितंबर से ही शुरू है, इसीलिए आज हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से आर्टिकल के माध्यम से पितृपक्ष श्राद्ध पर चर्चा करेंगे। साथियों बात अगर हम पितुपक्ष श्राद्ध में मान्यताओं की करे तो, मान्यता है यदि विधि-विधान से पितरों का तर्पण न किया जाए तो उनको मुक्ति प्राप्त नहीं होती। श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। कहा जाता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं और 15 दिनों तक पितर धरती पर रहते हैं। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष व श्राद्ध की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है और इसका विशेष महत्व है। कहा जाता है कि यदि पितर नाराज हो जाए तो व्यक्ति को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, इसलिए उन्हें प्रसन्न करने व उनका आशीर्वाद पाने के लिए पितृ पक्ष उनका तर्पण अवश्य करना चाहिए। इस दौरान दान करने से भी पुण्य मिलता है, साथ ही कुछ नियमों का भी पालन करना अनिवार्य होता है। पितृपक्ष श्राद्ध 11 सितंबर से शुरू हो रहा है, लेकिन 10 सितंबर को भाद्रपद पूर्णिमा के दिन ऋषि तर्पण के साथ महालय का आरंभ हो जाएगा। शास्त्रों में बताया गया है कि भाद्र शुक्ल पूर्णिमा का धार्मिक दृष्टि से बड़ा ही महत्व है। इस दिन अगस्त मुनि सहित ऋषियों के नाम से तर्पण किया जाता है और उन्हें जल दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध की शुरुआत में पूर्वज अपना हिस्सा लेने के लिए पृथ्वी पर आते हैं, इसलिए उनकी तिथि से एक दिन पहले शाम के समय दरवाजे के दोनों ओर पानी दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि आप अपने पूर्वजों को आमंत्रित कर रहे हैं और दूसरे दिन जब किसी ब्राह्मण को उसके नाम से भोजन कराया जाता है तो उसका सूक्ष्म रूप पितरों तक भी पहुंच जाता है। बदले में पूर्वज आशीर्वाद देते हैं और अंत में पूर्वज संसार में लौट आते हैं। यह भी देखा गया है कि जो लोग पितरों को नहीं मनाते वे बहुत परेशान रहते हैं। साथियों बात अगर हम 11 से 25 सितंबर 2022 प्रतिदिन के मान्यताओं के अनुसार उसके महत्व की करें तो, 11 सितंबर रविवार द्वितीया का श्राद्ध, 12 सितंबर सोमवार तृतीया का श्राद्ध, 13 सितंबर मंगलवार चतुर्थी का श्राद्ध, 14 सितंबर बुधवार पंचमी का श्राद्ध, 15 सितंबर बृहस्पतिवार षष्ठी का श्राद्ध, 16 सितंबर शुक्रवार सप्तमी का श्राद्ध, 18 सितंबर रविवार अष्टमी का श्राद्ध, 19 सितंबर सोमवार नवमी/सौभाग्यवतीनां श्राद्ध, 20 सितंबर मंगलवार दशमी का श्राद्ध, 21 सितंबर बुधवार एकादशी का श्राद्ध, 22 सितंबर बृहस्पतिवार द्वादशी/सन्यासियों का श्राद्ध, 23 सितंबर शुक्रवार त्रयोदशी का श्राद्ध, मघा श्राद्ध 24 सितंबर शनिवार चतुर्दशी का श्राद्ध-चतुर्दशी तिथि के दिन शस्त्र, विष, दुर्घटना से मृतों का श्राद्ध होता है चाहे उनकी मृत्यु किसी अन्य तिथि में हुई हो। यदि चतुर्दशी तिथि में सामान्य मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि में करने का विधान है। अपमृत्यु वालों का श्राद्ध 25 सितंबर रविवार अमावस, अमावस्या का श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध, महालय श्राद्ध, अज्ञात मृत्यु तिथि वालों का श्राद्ध (जिनकी तिथि नहीं पता हो) श्रद्धया इदं श्राद्धम् (जो श्रद्धा से किया जाय, वह श्राद्ध है।) भावार्थ है प्रेत और पित्त्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। साथियों बात अगर हम एक अनुभव शेयर करने की करें तो मेरी परम पूज्य माता का 22 माह पूर्व परलोक गमन हुआ था और 24 सितंबर को उनका दूसरा श्राद्ध निकला है और हम माताजी को गया जी बिहार में प्रभु चरणों में अर्पित करने का विचार लेकर पंडित के पास गए तो उन्होंने जानकारी दी कि माताजी के श्राद्ध कम से कम 3 साल करने होंगे उसके बाद ही गया जी गमन किया जा सकता है ऐसी मान्यता और धार्मिक नियम की उन्होंने जानकारी दी, पर चूंकि हम अपनी छोटी बहन, पिताजी का भी गया जी गमन करना है इसलिए पंडित जी ने कुछ पूजा कर माताजी के गमन की भी अनुमति दी है, परंतु हम विचार में पड़ गए हैं कि मान्यताओं का पूरा पालन किया जाए यही हम भारतीयों की खूबसूरती है कि हर प्रथा का पालन रीति रिवाज मान्यताओं के साथ करते हैं। साथियों माना जाता है कि पितृपक्ष में पूर्वज कौवे रूप में धरती पर आते हैं। मान्यता है कि श्राद्ध करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। यह समय पुण्य प्राप्त करने का होता हैं। इसमें हम अपनी तमाम समस्याओं का निवारण भी कर सकते हैं। तर्पण न करने के परिणाम गंभीर हो सकते हैं और तमाम समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है। हालांकि इसका कोई प्रमाण नहीं है सब मान्यताओं पर आधारित है। इस समय नए और शुभ कार्य करने की वर्जना होती है। जिन पुरुषों के माता-पिता जीवित हैं और जिन स्त्रियों के सास-ससुर जीवित हैं, उनके ऊ पर पितृ पक्ष के नियम लागू नहीं होते। श्राद्ध पक्ष की शुरुआत के साथ ही मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है, शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इन 16 दिनों में केवल पितृ पूजन ही किया जानाचाहिए। अन्य कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। जब श्राद्ध के दिन खत्म हो जाते हैं तब नवरात्रि शुरू होती है। अत: अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पितृपक्ष श्राद्ध 2022 मान्यता है पितृपक्ष में यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने 15 दिन मुक्त कर देते हैं इसीलिए वह धरती पर रहते हैं। प्राचीन काल से चली आ रही प्रथा का सम्मान पूर्वक पालन करना भारतीयों के रग रग में समाहित है। पितृपक्ष श्राद्ध में पूर्वज आशीर्वाद देने आते हैं।

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