ऑनलाइन पढ़ाई : चुनौतियों के मध्य शिक्षकों द्वारा किये जा रहे प्रयास

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संजय नौटियाल (अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन)

आज विश्वव्यापी महामारी कोविड- 19 से बचाव के लिए ऐहतिहाती उपायों के चलते भारत में पिछले लगभग 80  दिनों से विद्यालय बंद है. इस तालाबंदी और सख्त पाबन्धियों का भारत ही नहीं अपितु  पूरे विश्व में  मौजूदा समय में लगभग सवा अरब बच्चों और युवाओं की पढ़ाई- लिखाई पर इसका असर पड़ा है और यह तब तक जारी रहने की संभावना है जब तक स्थितियां सामान्य नहीं हो जाती. विश्व की तरह ही हमारे देश ने भी अब ऑनलाइन या फिर कहें वर्चुवल क्लासेज की इस व्यवस्था को जल्द ही स्वीकार कर लिया है और हजारों विद्यालयों में इस माध्यम से पढ़ाई गतिमान है और बच्चे भी इस व्यवस्था के साथ काम करने  के लिए मजबूर हैं, यहाँ तक की बहुत से विद्यालयों ने तो अपने स्तर से निजी एप भी बना डालें है, मसलन ऑनलाइन पढ़ाई को लेकर एप्स  की  भी कोई कमी नहीं है , इसके आलावा सरकारों ने भी शिक्षकों को बच्चो के साथ ऑनलाइन संवाद स्थापित करने को कहा है और इसी क्रम  में  सरकार द्वारा  यू -ट्यूब,  ई-पाठशाला, दीक्षा एप ,स्वयंप्रभा आदि के माध्यम से कक्षा 1 से 12 वीं  तक  की सामग्री  भी ऑनलाइन उपलब्ध करवा दी गई है।
 
पर सवाल यह  है इस तरह की पढ़ाई बड़े शहरों के नामी स्कूलों में तो संभव दिखाई देती है क्योकिं उनके अभिभावकों के पास  स्मार्टफ़ोन ,कंप्यूटर और इन्टरनेट की सुविधा उपलब्ध है, पर जैसे ही  हमारी नजर छोटे कस्बों या फिर ग्रामीण अंचलों  की तरफ  जाती है तो यह तस्वीर कुछ धूंधली सी नजर आती है और  इस प्रक्रिया का भाव और उदेश्य परास्त  सा होता प्रतीत होता  है, हाशिए पर रह रहे उन तमाम बच्चों के लिए जो अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा व पोषण के लिए स्कूलों में मिलने वाली सहायता पर निर्भर हैं, उनके लिए इस तरह की पढ़ाई में बहुत सी बाधाएं  है मसलन, ज्यादातर बच्चे जो सरकारी विद्यालयों  में पढतें हैं उनमे से बहुतायत अभिभावक आर्थिक रूप से कमजोर हैं जिनके लिए वर्तमान में रोजी- रोटी और आजीविका का घोर संकट खड़ा हो गया है साथ ही इन निर्धन अभिभावकों  में से  बहुतों के पास न  तो  स्मार्ट फ़ोन हैं तथापि व्हाट्सएप, नेट लिंक उनके लिए दूर की कौड़ी है और जहाँ थोडा बहुत उपलब्धता है भी तो वहाँ या तो इन्टरनेट की गति इतनी धीमे हैं की वहाँ  कोई फोटो  या विडियो डाउनलोड करना चुनौती बनी रहती है और साथ ही विद्युत की अनवरत आपूर्ति भी कही बार  चुनौती साबित होती है , तो कुल मिलकार कहा जा सकता है की चुनौतियाँ असंख्य हैं और जमीनी स्तर की इसकी  मुक्कमल तैयारी भी नहीं दिखाई पड़ती है।

चूँकि यह लॉकडाउन सत्र के प्रारंभ में ही घोषित हुआ, जो की  हम सबके लिए अकल्पनीय था ,लिहाजा बच्चे  नई किताबों और उसके पाठ्यक्रम  से भी परिचित नहीं हैं और साथ ही शिक्षकों के लिए भी यह चुनौती बनी हुई है कि  पढ़ाने और गृहकार्य  का सही क्रम क्या हो ? जिसमे सीखने की व्यतिगत विभिन्नता,सीखे हुए का आंकलन सही तरीके से किया जा सके और चुनौतियों का स्तर तब और भी बढ़ जाता है जब बच्चों मिल रहे कार्य में अभिभावक  विषयगत समझ के अभाव के चलते उनकी मदद नहीं कर पाते ,नतीजन  बच्चे  भी अपने को  बार – बार असहज और असहाय  सा महसूस करतें हैं।
 
बाबजूद तमाम पाबदियों मसलन  दैहिक दूरी , संक्रामकता ,सुरक्षा और अधोलिखित 
मजबूरियों  के चलते बहुत से शिक्षक बच्चों के साथ सार्थक और अर्थपूर्ण  संवाद करने में सफल हो रहें हैं और इस सन्दर्भ मेंबहुत से शिक्षकों सेबातचीत करने के पश्चात पता चलता है कि वे बच्चों और उनके अभिभावकों की  चिंताओं में तन ,मन और धन से शामिल होने का प्रयास कर रहें हैं और साथ ही इस बात का भी ध्यान रख रहें है की उनको दिए जाने वाला कार्य उनकी रुचि, सहज सुलभ सामग्री,परिवेशीय समझ  के अनुसार हो, साथ ही कहीं न कहीं  गणित, भाषा और पर्यावरण विषय से भी सम्बंधित हो।

  इसी क्रम  में एक शिक्षक अपना अनुभव साझा करते हुए बताते है कि उन्होंने अपने विद्यालय के  कक्षा 5 के बच्चो को इस बात के लिए प्रेरित किया की वे अपने गाँव का नजरी नक्शा  बनाये जिसमे  गाँव की सड़क से अनुमानित दूरी ,घरों की व्यवस्था, विद्यालय ,पंचायत भवन ,घरो को  मिलाने वाले  कच्चे रास्ते शामिल हों और साथ ही वे अपने गाँव में महिला, पुरुषों, बच्चो, की संख्या को जुटाए और उनकी उम्र के हिसाब से सूची बनाये. शिक्षक बताते हैं इस तरह का कार्य  बच्चों के अन्दर  नक्शों की समझ के साथ ही आकड़ों का  संग्रहण  करनें के  कौशल को विकसित करने में मदद करेगा साथ ही उन्होंने बच्चों से  यह  भी कहा है की वे अपने अभिभावकों  से गाँव  से जुडी कोई कहानी या फिर किसी ख़ास मौके में गाये जाने वाले गीतों और औखाणों को सुने और उसे लिखने और साथ ही यह जानने का भी प्रयास करें की वो किस सन्दर्भ  लिखे और गाएं गए होंगे. शिक्षक कक्षा 4 के बच्चों के साथ के अनुभव साझा करते हुए बताते है की उन्होंने  बच्चो से कहा है  वे अपने माता- पिता, दादा – दादी आदि से किसी खास मौकों पर लगने वाले स्थानीय मेलों की कहानियों को सुने और उनके इतिहास और महत्व को समझे और साथ  ही उन पर ढेर सारे भी सवाल बनायें. शिक्षक ने बताया कि  इससे बच्चों के अन्दर सवालों को बनाने के साथ ही  खोज विधा के द्वारा सीखने  की प्रवति का विकास होगा. कक्षा 3 से 5 तक के बच्चों  को  उन्होंने अपनी दैनिक डायरी दी जिसमे उनका आज का दिन कैसा रहा, क्या -क्या किया आदि का  विस्तारपूर्वक लिखने को कहा है  जिस पर  शिक्षक अपना अनुभव साझा करते हुए बताते  हैं की इस प्रकार के कार्य में उनके बच्चे खूब रुचि ले रहें है और कुछ बच्चे उनसे अपने कार्य साझा भी कर पा रहें है।
 
 इसी प्रकार सुदूर दुर्गम विद्यालय में कार्यरत शिक्षिका अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं कि वह फ़ोन कर प्रत्येक बच्चे से अलग -अलग दिन बात करती है और उनको उनकी कक्षानुसार कार्य देती हैं जिसमे उन्होंने कुछ बच्चों को कहा है कि अपने परिवेश में उगाई जाने वाली स्थानीय फसलों और फलों, गाय के दूध और घी से होने वाली कमाई की जानकारी जुटाएं और उनकी सूची बनाये. वह बताती हैं की इस प्रकार की गतिविधि बच्चो को फसल चक्र ,मौसम, पशुप्रेम  के साथ  ही श्रम की महत्त्व गहराई  से समझने में सहायता करती है. इसके अलावा उन्होंने कुछ कार्य जो सीधे उनकी जिन्दगी से जुड़े हैं जैसे, कमरे की लम्बाई और चौड़ाई ,मेज, चारपाई आदि को बालिश्त, कदमों से नापना ,तोलना , घडी में समय देखना समय, इससे उन्हें अनुमानित मापन और मानक मापन के मध्य अंतर और उसकी जरुरत को समझने में  मदद करेगा  साथ ही उन्हें यह भी कहा है की वे  उनके आस – पास पाए जाने वाली आकृतियों की पहचान जैसे कौन सी वस्तु त्रिभुजाकार,वर्गाकार, आयताकार ,गोलाकार  है और उनमे  किस प्रकार के कोण बन रहें है और उनके चित्र बनाने और उनमे रंग भरने को कहा है।

बहुत से शिक्षक ऐसे भी है जो कही न कही अर्थपूर्ण तरीकों से बच्चों के साथ तमाम कठिनाइयों के बाबजूद भी सार्थक संवाद बनाये हुए है और अपने अपने स्तर से बच्चो के साथ निरंतर जुड़े हुए हैं,  एक शिक्षक ने बताया की उनके द्वारा आजकल बच्चों को पत्र लेखन का कार्य दिया गया है। उदाहरण के तौर उन्होंने कहा की उन्होंने बच्चो  को अपने ग्राम प्रधान को एक पत्र लिखने को कहा है जिसमे वे गाँव से सम्बंधित समस्याओं का जिक्र करें साथ ही वे अपने सुझाव भी दें की कैसे उन समस्याओं को दुरुस्त किया जा सकता है, वह बताते हैं की यह विधा पत्र लेखन कौशल का विकास तो करेगा ही साथ में वे लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के तहत स्थानीय स्वशासन की प्रक्रिया भी समझ सकेगे, साथ ही वह आजकल रचनात्मक लेखन के कौशलों को विकसित करने के लिए बच्चों को कुछ शब्द , लोकोक्तियाँ ,मुहावरे  देकर उनसे ऐसी कहानी, कविता, मन गीत  को बनाने  के लिए प्रेरित कर रहें है जिसमे उन शब्दों,लोकोक्तियों ,मुहावरों  का कहीं न कही जिक्र हो।

हालांकि इस तरह की पढ़ाई की एक सीमा है और वास्तविक कक्षा कक्ष का स्थान नहीं ले सकता है, पर वर्तमान परिस्थियों में तमाम पाबंदियों और मजबूरियो के चलते  बच्चों  के साथ संवाद बनाने के शिक्षक साथियों द्वारा साझा किये गयी गतिविधियाँ जो कि आरंभिक स्तर के बच्चों के लिए उपयोगी हो सकती है जो कहीं न कहीं प्रत्यक्ष या फिर परोक्ष रूप से भाषा,गणित, पर्यावरण अध्ययन  विषय से जुडी हुई  हैं साथ ही इस तरह का कार्य बच्चो को लिखने, पढने, सुनने,जानने – समझने ,खोज करने की विधा को विस्तार देने के अवसर भी देता है।  

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