लोकसंहिता डेस्क
उत्तराखण्ड राज्य में पर्वतीय क्षेत्रों की शिक्षा व्यवस्था सरकारी शिक्षा के भरोसे है और सच्चे अर्थों में कहें तो यह सरकारी शिक्षा अब लगातार रसातल को जा रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में सरकारी विद्यालयों में कहीं शिक्षक शिक्षिकाओं की कमी है तो कहीं विद्यालय भवन जर्जर और जीर्णशीर्ण हालातों में हैं कक्षा -कक्ष खण्डहर नुमा भवनों में चल रहे हैं पता नही कब कोई विद्यालय भवन भरभरा कर गिर जाए कोई नही जानता और इसी तरह के शिक्षा के केन्द्रों मे पर्वतीय क्षेत्रों में छात्र -छात्रायें शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
आजकल ये विद्यालय भवन कोरोना संक्रमण काल में अपने गृहक्षेत्रों को लौट रहे दूसरे प्रदेशों से आये प्रवासियों के लिए क्वारेंटाइन सैंटर बने हुए हैं कुछ दिन पूर्व ही इसी तरह के एक क्वारेंटीन सैंटर में एक चार साल की मासूम बच्ची को सांप ने डस लिया था जिससे उस मासूम बालिका की मौत हो गई थी।
अब आप विचार करें कि इन खण्डहर नुमा भवनों में क्या देश के भविष्य के कर्णधारों का निर्माण होगा ?।उत्तराखण्ड राज्य को अस्तित्व में आये लगभग बीस साल बीत चुके हैं लेकिन जिन मुद्दों को लेकर यह उत्तराखण्ड प्रदेश अस्तित्व में आया उसमें बदहाल शिक्षा व्यवस्था भी एक थी लेकिन दुखद स्थति यह है कि इस राज्य ने कई सरकारें देखी ,सरकारों के कई मुखिया देखे लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों मे शिक्षा की दयनीय हालत सुधरने की जगह और खराब होती गई और इसमें जितना दोष कुछ जी हां कुछ शिक्षक शिक्षिकाओं का है उतना ही इस प्रदेश में सत्तारूढ दलों ओर उनके मुखियाओं का भी है जिन्होनें शिक्षा जैसें सबसे महत्वपूर्ण विषय को नेपथ्य में रख दिया।
आज पर्वतीय क्षेत्रों मे पलायन पर लम्बें चौड़े सेमिनार आयोजित होते हैं लेकिन पलायन के प्रमुख कारकों में से एक शिक्षा व्यवस्था पर भी सरकारों की नजरे इनायत होनी चाहिए पहाड़ो मे शिक्षक शिक्षिकाओं का भी वार्षिक मूल्यांकन होना चाहिए क्योंकि कहा जाता है कि अगर एक छात्र परीक्षा में असफल होता है तो असलता का उत्तरदाइत्व शिक्षक शिक्षिकाओं का होता है।अयोग्य शिक्षक शिक्षिकाओं को दूसरे विभागों में समायोजन किया जाना चाहिए साथ ही विद्यालय भवनों के रखरखाव तथा नव निर्माण को प्राथमिकता देनी चाहिए।