सुरेन्द्र देव गौड़
शशि थरूर एक विद्वान तथा कांग्रेस के बड़े नेता हैं। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसमें नरेंद्र मोदी जी को भगवान शिव के सिर पर बैठा चूहा बताया गया था। जब विवाद बढ़ा तो उन्होंने बताया कि यह एक उद्धरण मात्र था जो वस्तुतः एक अन्य लेखक की पुस्तक से लिया गया था ! सिर्फ विद्वत जन ही नहीं राजनीतिक विरोधी तथा सामान्य नागरिक भी नरेंद्र मोदी जी के धुर विरोध में दिखाई देते हैं। यह विरोधी उनके प्रति बेहद अपमानजनक वक्तव्य देते हैं तथा शत्रु वत व्यवहार करते हैं। इसके ठीक विपरीत उनके कट्टर समर्थकों की संख्या भी करोड़ों में है। इन समर्थकों के लिए नरेंद्र मोदी जी विलक्षण प्रतिभा के स्वामी हैं तथा देश की प्रगति के लिए अत्यावश्यक है। क्या वजह है कि नरेंद्र मोदी जी के व्यक्तित्व ने समाज का तीव्र ध्रुवीकरण किया है ? इससे पहले यह प्रश्न उठता है कि क्या नरेंद्र मोदी जी को तीव्र ध्रुवीकरण के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है ?
करोड़ों मानवों का समूह जो नरेंद्र मोदी जी को नकारात्मक ऊर्जा का स्रोत मानता है उनके अनुसार उनके पास इसके उचित कारण उपलब्ध है। उनके अनुसार नरेंद्र मोदी जी आडवाणी जी की रथयात्रा के मुख्य कर्ताधर्ता रहे तथा गोधरा दंगों के प्रश्रय दाता रहे। प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने अपने संरक्षक रहे आडवाणी जी को नेपथ्य में धकेल दिया। देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने खुलेआम घोषित किया की वह कांग्रेस पार्टी को समाप्त करना चाहते हैं। आजादी के बाद कांग्रेस ने देश में जो भी कार्य किए उन कार्यों को महत्वहीन साबित किया। नोटबंदी कर देश की आर्थिक विकास दर को कम कर दिया। जीएसटी लागू कर देश में आर्थिक अनिश्चितता को जन्म दिया। धारा 370 समाप्त कर कश्मीरियों को देश के खिलाफ कर दिया तथा कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। डोकलाम में चीन को चुनौती देकर उसे उकसाया। पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक कर उसे अधिक आक्रामक होने का मौका दिया। भारत के मुसलमानों को अपनी नीतियों से अलगाववाद की तरफ धकेल दिया। इस प्रकार के अनेकानेक आरोप वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पर लगाए जाते हैं।
इसके विपरीत विशाल जनमानस जो करोड़ों में है मोदी जी पर अथाह श्रद्धा रखता है । उनके अनुसार नरेंद्र मोदी जी ईश्वरीय देन है। समर्थकों के अनुसार मोदी जी देश को सामाजिक, आर्थिक ,सांस्कृतिक तथा रणनीतिक दृष्टि से सशक्त बनाने की योग्यता रखते हैं। मोदी जी के समर्थकों के अनुसार प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने 6 वर्ष के अंदर ही ऐसे कार्य कर दिए जिससे उनके प्रति विश्वास श्रद्धा में रूपांतरित होता जा रहा है। जन धन योजना, उज्जवला योजना, किसान सम्मान निधि योजना, राम मंदिर निर्माण ,धारा 370 का उन्मूलन इत्यादि मोदी जी के पक्ष में जाते दिखाई देते हैं। पाकिस्तान के प्रति आक्रामक नीति से उनके समर्थकों में उत्साह का माहौल है। डोकलाम में विस्तार वादी व आक्रामक चीन पर नकेल कसकर उन्होंने अपने व्यक्तित्व का लोहा मनवाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का आकलन करते समय मैं स्वयं को किस खेमे में रख सकता हूं? मेरा मानना है कि श्री नरेंद्र मोदी जी पर भरोसा करना मेरी नियति है।
इसके निम्नलिखित कारण हैं: सन 2004 से 2014 तक भारत में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार चल रही थी। उस सरकार के समय में देश की सेनाओं का आधुनिकीकरण पूर्णतया स्थगित रहा। नौसेना में लगभग आधा दर्जन भीषण तथाकथित दुर्घटनाएं हुई जिसमें कई युद्धपोत क्षतिग्रस्त हुए थे। इन घटनाओं को मैंने हमेशा संदेह की दृष्टि से देखा था। इन दुर्घटनाओं में षड्यंत्र दिखाई देना स्वाभाविक था। वायु सेना के लिए सुखोई विमान लाने की डील वाजपेई सरकार के समय हुई थी। इसके बाद लगभग एक दशक में वायु सेना को मजबूत करने के लिए कोई भी ठोस कार्य नहीं किया गया। जब से नरेंद्र मोदी जी की सरकार आई है वायु सेना तथा थल सेना की आक्रामक क्षमता को बढ़ाने के लिए बहुत से कदम तेजी से उठाए गए हैं। आज भारत के पास श्रेष्ठतम हेलीकॉप्टर तथा तोपे मौजूद है। भारत की वायुसेना को विश्व के आधुनिकतम राफेल विमान मिलने शुरू हो गए हैं। देश में ही तैयार किए गए तेजस विमान भी तेजी से वायु सेना में शामिल किए जा रहे हैं।
पाकिस्तान के संदर्भ में देखा जाए तो 2004 से 2014 तक तत्कालीन सरकार की नीति लुंज- पुंज थी। पाकिस्तान ने मुंबई की घटना को अंजाम दिया तथा कांग्रेस सरकार कागजी कार्यवाही से आगे नहीं बढ़ पाई। कांग्रेसी सरकार ने पीओके ,जम्मू एंड कश्मीर तथा बलूचिस्तान को लेकर कभी भी अग्रगामी नीति नहीं अपनाई। लगभग यही हाल चीन को लेकर रहा था। चीन की सरकार अरुणाचल को लगातार अपना हिस्सा बताती रही लेकिन तत्कालीन भारतीय सरकार ने अक्साई चीन, तिब्बत या पाक के कब्जे वाले कश्मीर से गुजरने वाले मार्ग को लेकर कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं दिखाई। लगता था कि भारत की तत्कालीन सरकार दोनों पड़ोसियों के प्रति किसी हीन भावना से ग्रसित थी। यदि चीन तथा पाकिस्तान के बारे में वर्तमान सरकार को देखा जाए तो इसने आक्रामक तथा अग्रगामी नीति का अनुसरण किया है। पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान को उसकी हैसियत का अहसास कराया गया तथा चीन को उसकी सीमाओं में रहना सिखाया गया है। डोकलाम में बिना शोरगुल मचाए चीन को शिकस्त दी गई । यह शानदार सैनिक कूटनीति का प्रदर्शन था।
आर्थिक मामलों में वर्तमान सरकार को दोष दिया जाता है कि इसने जीडीपी वृद्धि दर कम कर दी है। मेरी समझ के अनुसार 2004 से 2014 तक देश में कई क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता में भारी बढ़ोतरी हुई थी। उम्मीद थी कि देश में आंतरिक मांग बढ़ेगी अथवा निर्यात बढ़ेगा जिससे उत्पादन खपाया जाना संभव होगा ! लेकिन इस देश में राष्ट्रीय आय का वितरण बेहद असंतुलित है जिसके कारण आंतरिक मांग आशा अनुरूप नहीं बढ़ पाई। इस दौरान विश्व के कई देशों में आर्थिक मंदी देखी गई जिससे निर्यात बढ़ाना भी संभव ना हो सका । अंतरराष्ट्रीय व्यापार में चीन की धमक के कारण यह कार्य और भी दुष्कर साबित हो रहा था। इसी समय भारत सरकार ने नोटबंदी करके तथा जीएसटी लागू करके आर्थिक गतिविधियों को शिथिल कर दिया। लेकिन क्या नोटबंदी का विचार गलत था ? मुझे लगता है कि इस प्रश्न का उत्तर प्रश्न से ही समझना संभव होगा। एक छात्र जो हमेशा नकल करके पास होता हो क्या वह नकल विरोधी कानून पसंद करेगा? मुझे याद है उत्तर प्रदेश में जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने नकल रोकने के लिए युद्ध स्तर पर काम किया था जिससे स्कूलों का रिजल्ट बेहद कम हो गया था। इससे युवा वर्ग उनसे बेहद नाराज हुआ और बीजेपी का सत्ता में वापस आना मुश्किल हो गया था। नोटबंदी का आकलन करते समय संबंधित कर्मचारियों तथा नागरिकों के व्यवहार को देखना बहुत जरूरी है !भारत में कुछ भ्रष्ट बैंक कर्मचारियों ने तथा कुछ भ्रष्ट नागरिकों ने येन- केन प्रकारेण नोटबंदी की महत् योजना को पूरी तरह सफल नहीं होने दिया।
उस दौरान देशभर में बहुत से बैंक कर्मचारियों पर मुकदमे दर्ज हुए थे। हम जानते हैं की सेना की घेराबंदी के बावजूद कभी-कभार आतंकवादी निकल भागते हैं इसका अर्थ यह नहीं कि सैनिक कार्यवाही गलत है या होनी नहीं चाहिए। रही बात जीएसटी की तो इसको लागू करने का विरोध करने वालों को बताना चाहिए कि इसे सोचने तथा लागू करने में लगभग 60 वर्षों की देरी क्यों हुई? फ्रांस पहला देश था जिसने 1954 में जीएसटी लागू किया था! भारत हर काम में पश्चिम की नकल करता रहा तो जीएसटी की नकल करने में इतनी देर क्यों लगाई गई? यह नकल देश के आर्थिक एकीकरण में सहायक हो सकती थी। कांग्रेसी कहते हैं कि जीएसटी लागू करने में जल्दबाजी की गई। कांग्रेस सरकार के पास 2004 से 2014 के मध्य 10 वर्ष थे। उन्होंने इसे क्रमिक रूप से धीरे-धीरे लागू क्यों नहीं किया? देश का राजनीतिक एकीकरण गुजरात के पुत्र के हाथों हुआ था तथा आर्थिक एकीकरण भी एक गुजराती के माध्यम से ही हुआ है ! शायद नियति का ऐसा ही विधान रहा हो।
कोविड-19 के चलते जो संपूर्ण तालाबंदी हुई है उसका भी भारी विरोध किया जा रहा है। राहुल गांधी जी का मानना है की तालाबंदी पहले क्यों नहीं की गई? लेकिन वह यह भी कहते रहे की तालाबंदी कोविड-19 से लड़ने का सही तरीका नहीं है। उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री उनकी सलाह के विपरीत तालाबंदी करते रहे । ऐसे राजनेता की सलाह का क्या किया जा सकता है? मुझे लगता है लाक डाउन के समय सरकार ने वायरस से जूझने के लिए कुछ इंतजाम किए। इन प्रयासों में सरकार आंशिक रूप से सफल भी हुई। आज भारत पीपीई किट बड़ी मात्रा में बना रहा है। वैक्सीन बनाने का प्रयास जोरों पर है । स्वास्थ्य कर्मी अधिक सतर्क व प्रशिक्षित हो चुके हैं। विरोधी हो हल्ला कर रहे हैं कि वर्तमान सरकार कुछ नहीं कर रही है तो उन्हें बताना चाहिए कि पिछले 60 वर्षों में(2014 से पहले) सिर्फ़ 30,000 वेंटिलेटर ही उपलब्ध क्यों थे?इसमें भी केवल 10% प्रतिशत आपातकाल के लिए खाली होते हैं। आज आपातकाल में देश को लगभग एक लाख वेंटीलेटर्स की जरूरत है। अब इनकी संख्या बढ़ाने की हर संभव कोशिश की जा रही है। हम सभी जानते हैं कि देश की जनसंख्या बढ़ रही थी लेकिन एम्स जैसे संस्थान नहीं बढ़ रहे थे। देश में वेंटिलेटर, स्वास्थ्य विशेषज्ञ तथा वैकल्पिक चिकित्सा व्यवस्था बेहद सीमित थी। इसके लिए वर्तमान प्रधानमंत्री को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं। एम्स के कुछ नए संस्करण वाजपेई सरकार के समय चालू किए गए थे लेकिन कांग्रेस सरकार के समय उनका काम द्रुतगति से नहीं चला।
मोदी जी से नफरत करने वाले मानते हैं कि कश्मीर नीति से कश्मीर में अलगाव बढ़ा। लेकिन कश्मीर में शेख अब्दुल्ला के जमाने से ही अलगाव रहा है। पहले प्रधानमंत्री नेहरू जी ने शेख अब्दुल्ला को लंबे समय तक हिरासत में क्यों रखा था? जो लोग कश्मीरी अलगाव के लिए मोदी जी को जिम्मेदार समझते हैं वे या तो मूर्ख है या लोमड़ी की तरह चालक। इसी प्रकार भारतीय अल्पसंख्यकों में अलगाव के संकेतों के लिए मोदी जी को जिम्मेदार ठहराया जाता है। लेकिन भारतीय अल्पसंख्यकों ने इस देश की संस्कृति व इतिहास को अपनाया कब? उन्होंने अरबी व फारसी को अपना समझा। अपने धार्मिक संस्थाओं में अरबी इतिहास पढ़ाया। इस देश पर हमला करने वाले अरबी, फारसी व अफगानी विदेशी आक्रांताओ को अपना समझा। मोदी जी ने अल्पसंख्यक अलगाव को संपुष्ट नहीं किया !वरन उनके समय में अलगाव की गुप्त धारा सतह पर आकर प्रकट हुई है। इस गुप्त धारा को सतह पर लाने के लिए मोदी जी अभिनंदन के पात्र हैं।
मोदी जी के समय में देश में सनातन संस्कृति पर भरोसा करने वालों का आत्मविश्वास प्रगाढ़ होता जा रहा है। विरोधी चिंतित है कि भारत हिंदू पाकिस्तान बन जाएगा। इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? पश्चिम के देश लोकतंत्र की दुहाई देते हैं लेकिन क्या वास्तव में वहां सांस्कृतिक व धार्मिक परिदृश्य में लोकतंत्र है? पाठकों को याद करना होगा की महान विचारक तथा रहस्य दृष्टा ओशो को किस प्रकार यूएसए से खदेड़ा गया था। ओशो को यूएसए से खदेड़ने के लिए ईसाई व्यवस्था ने पूरा जोर लगा दिया था क्योंकि उस व्यक्ति का सामना करने की सामर्थ उनमें नहीं थी। ईसाई संगठन में कोई नहीं था जो उनके व्यक्तित्व के सामने ठहरता फलतः उन्हें खदेड़ दिया गया। यदि इस देश में सनातन संस्कृति को पुष्ट किया जा रहा है तथा विदेशी विचारों की जड़ों में मट्ठा डाला जा रहा है तो देश के लिए शुभ हो रहा है। हां ,हमें चौकन्ना रहने की आवश्यकता होगी। हमारी सांस्कृतिक व्यवस्था में या सामाजिक व्यवस्था में यदि कोई बात प्रासंगिक नहीं है तो उसे समाप्त करना हमारा दायित्व होगा।
सन 2014 के पश्चात इस देश में समुद्र मंथन की भांति सास्कृतिक मंथन हो रहा है। यह बहुत पहले प्रारंभ होना चाहिए था। मुझे प्रसन्नता है कि किसी राजनेता ने इसके लिए उचित वातावरण पैदा करने का सामर्थ्य दिखाया है। इस मंथन से अमृत कलश निकलने की उम्मीद है, यद्यपि इस प्रक्रिया में विष वमन अधिक होगा। उस विष को नियंत्रित करने तथा निस्तेज करने की क्षमता इस देश के समाज तथा वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में है ,ऐसा मैं समझता हूं ।