राजीव थपलियाल
नई-नई सुखद अनुभूतियाँ,
कितना प्यारा-प्यारा।
अनुपम स्नेह की झांकी में,
बीते शिक्षक दिवस हमारा।
महान शिक्षाविद, दार्शनिक और स्वतंत्र भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 05 सितंबर सन् 1888 को तमिलनाडु राज्य के तिरुतणी नामक ग्राम में हुआ था। प्रखर वक्ता तथा दार्शनिक स्वभाव के आस्थावान विचारक ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 40 वर्ष शिक्षण कार्य में व्यतीत किये। इस महान विभूति में एक आदर्श शिक्षक के सारे गुण मौजूद थे। यदि इनके सफरनामे पर, एक दृष्टि डाली जाए तो हम देख पाते हैं कि, सन् 1952 से 1962 तक वे देश के उपराष्ट्रपति तथा 1962 में ही राष्ट्रपति बने, इसी दौरान उनके कुछ शिष्यों और प्रशंसकों ने उनसे निवेदन किया कि वें सभी लोग डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। तो इस संबंध में उन्होंने कहा कि मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने से निश्चित ही मैं अपने आपको गौरवान्वित महसूस करूँगा। तब से हर साल 05 सितंबर का दिन समूचे भारतवर्ष में शिक्षक दिवस के रूप में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इस महान विभूति का योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। कुशल प्रशासक जाने-माने विद्वान देशभक्त और उच्च कोटि के शिक्षा शास्त्री के रूप में इस महान विभूति की गिनती देश-विदेश में होती है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन सारे विश्व को एक शिक्षालय मानते थे उनकी मान्यता थी कि शिक्षा के द्वारा ही मानव के दिमाग का सही ढंग से सदुपयोग किया जाना संभव है। अत: समस्त विश्व को एक इकाई समझ कर ही शिक्षा का प्रबंधन किया जाना चाहिए। एक बहुत खास बात डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के व्यक्तित्व में यह थी कि वें अपनी गुदगुदाने वाली कहानियों बुद्धिमता पूर्ण व्याख्यानों से अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे और दर्शनशास्त्र जैसे गंभीर विषय को अपनी बेहतरीन और लाजवाब शैली से सरल और रोचक बना देते थे। महान दार्शनिक की उपलब्धियाँ-रूस में भारत का राजदूत रहते हुए विश्व के विभिन्न देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किये। वॉल्टियर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे। वर्ष 1939 से 1948 तक बीएचयू के चांसलर रहे। सन् 1948 में यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके अलावा डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन, प्रथम भारतीय के रूप में ब्रिटिश अकादमी के लिए भी चुने गए। कई वर्षों तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर रहे, साथ ही कोलकाता विश्वविद्यालय के जॉर्ज पंचम कॉलेज में भी प्रोफेसर रहे। इन सभी उपलब्धियों को देखते हुए वर्ष 1954 में इस महान विभूति को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1961 में इन्हें जर्मनी के एक पुस्तक प्रकाशन द्वारा विश्व शांति पुरस्कार से नवाजा गया। 1975 में इन्हें टेंपलटन पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। कुल मिलाकर इस महान शिक्षाविद के जीवन का सफर बहुत जानदार, शानदार और प्रेरणादायक रहा। शिक्षक दिवस के बेहतरीन मौके पर इस महान शिक्षा शास्त्री को हमारा शत-शत नमन, कोटि-कोटि प्रणाम। पूरे विश्व में शिक्षा का दीपक जलाते-जलाते इस महान विभूति का पार्थिव शरीर 17 अप्रैल 1975 को पंचतत्व में विलीन हो गया। कर्मठता और भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक के रूप में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन सदैव स्मरणीय रहेंगे। इस महान व्यक्तित्व के साथ-साथ समूचे शिक्षक समाज को चंद पंक्तियां समर्पित करना चाहूंग-सदाबहार फूलों सा खिलकर, महकता और महकाता शिक्षक।। रोज नए प्रेरक आयाम लेकर, हर क्षण रोचक बनाता शिक्षक।। ढेर सारा ज्ञान पल भर में देकर, खूब खिलखिलाता शिक्षक।। देश के लिए सब कुछ करने की, हर राह दिखाता शिक्षक।। प्रकाश पुंज बनकर हर समय, अपना शिक्षक धर्म निभाता शिक्षक।। आदर्शों की मिसाल बनकर, बाल जीवन संवारता शिक्षक।। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व माना जाता है। कहा जा सकता है कि शिक्षक समाज का आईना होता है शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूजनीय रहा है। जो सभी को ज्ञान देता है और जिसका योगदान, किसी भी राष्ट्र या देश के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायने में यदि देखा जाए तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढ़ता है और शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। माता पिता अपने बच्चे को जन्म देते हैं, लेकिन एक शिक्षक ही है जिसे हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता के बराबर दजा दिया गया है, क्योंकि शिक्षक ही हमें समाज में रहने योग्य बनाता है। विद्यार्थी के मन में पनपने वाले हर सवाल का जवाब देता है और विद्यार्थी को सही सुझाव देता है। सही मार्गदर्शन करता है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए हर समय प्रेरित करता रहता है। एक शिक्षक द्वारा दी गई शिक्षा ही शिक्षार्थी के सर्वांगीण विकास का मूल आधार है। अत: यहाँ पर यह कहना समीचीन होगा कि एक शिक्षार्थी को अपने गुरु के प्रति सदा आदर और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। किसी भी राष्ट्र का भविष्य निर्माता कहे जाने वाले शिक्षक का महत्व यहीं समाप्त नहीं हो जाता, उसे नित नये आयाम प्रतिपादित करते हुए अपने चर्मोत्कर्ष की ओर अग्रसर होते रहना चाहिए, क्योंकि समाज में शिक्षक का ही ऐसा व्यक्तित्व होता है, जो सभी को सही आदर्श मार्ग पर चलने के लिए लगातार प्रेरित करता रहता है। तभी तो प्रत्येक शिक्षार्थी के सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है। किसी भी देश या राष्ट्र के विकास में एक शिक्षक द्वारा अपने शिक्षार्थी को दी गई शिक्षा और शैक्षिक विकास की भूमिका का अत्यंत महत्व है। हम सभी गुरुजनों को सदैव अपने जीवन में उच्च आदर्श जीवन मूल्यों को स्थापित कर आदर्श समाज का निर्माण करने हेतु निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। शिक्षक दिवस के इस शानदार मौके पर मैं एक बात स्पष्ट कहना चाहूँगा कि सर्वप्रथम तो मैं अपने माता-पिता का अत्यधिक ऋणी हूँ जिन्होंने मुझे भारत वसुंधरा में जन्म देकर यह सुनहरा संसार दिखाया और साथ ही मैं अपने उन सभी गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ जिनके सानिध्य में रहकर मैंने अपनी ज्ञान पिपासा को शांत किया। मैं हृदय की गहराइयों से धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूँगा उन सभी गुरुजनों और शुभचिंतकों का जिन्होंने मेरी इस शैक्षिक यात्रा में अपने दुलार, प्यार और सहानुभूति से सर्पणी की भांति रेंगती हुई पगडंडियों के ऊ पर से बड़ी सहजता और शालीनता के साथ चलना सिखाने और मुझे इस काबिल बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया। अंत में मैं, आप सभी विद्वान गुरुजनों के सम्मान में कुछ पंक्तियां समर्पित करना चाहूँगा।
गुरुदेव…
जीवन के हर अंधेरे में,
रोशनी दिखाते हैं आप।
बंद हो जाँय जब,सब दरवाजे,
नये-नये रास्ते दिखाते हैं आप।
सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं,
जीवन जीना भी सिखाते हैं आप।