डॉ. सुभाष गुप्ता
देहरादून : कोरोना वायरस के साथ ही देश को फेक न्यूज रूपी एक और वायरस के हमले का भी सामना करना पड़ रहा है। किसी खतरनाक वायरस की तरह फैलने वाली फेक न्यूज भी कम खतरनाक नहीं है। फेक न्यूज लोगों का मनोबल तोड़ने, नफरत फैलाकर समाज को बांटने, जनता को गुमराह करने और नकारात्मकता का वाहक बन गयी हैं। फेक न्यूज लोगों को मौत के मुंह में भी पहुंचा सकती है। किसी खतरनाक वायरस की तरह घातक फेक न्यूज, लॉकडाउन के दौरान एक बड़ी चिंता बनकर उभरी है। केंद्र सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने इसे लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं।
सोशल मीडिया फेक न्यूज का सबसे बड़ा कारखाना बन रहा है। फेक न्यूज तैयार करने वाले अपने झूठ पर सच का मुलम्मा चढ़ाने के लिए आंकड़े देने से लेकर फर्जी वीडियो और फोटो तक का इस्तेमाल करने से नहीं चूकते। फेक न्यूज तैयार करने के लिए तकनीकों और सॉफ्टवेयर की मदद भी ली जा रही है। यानि ऐसे लोग भी फेक न्यूज बनाने और फैलाने का कुकृत्य कर रहे हैं जो तकनीकों के अच्छे जानकार हैं। कभी मलेशिया का फोटोग्राफ लगाकर गुजरात में लॉकडाउन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न होने की फेक न्यूज को एक सच के रूप में परोसी जाती है, कभी सरकार की ओर हैलीकॉप्टर से नोट गिराये जाने की, कभी कोई पुराना वीडियो लगाकर कोरोना पीड़ित को पुलिस के जवान पर थूकते दिखाया जाता है, कभी देश के एक प्रमुख चैनल की खबर का स्क्रीन शॉर्ट लेकर उसमें छेड़छाड़ करके लॉकडाउन दो जून तक बढ़ाने की खबर प्रसारित होने होने की फेक न्यूज प्रसारित कर दी जाती है। अस्पताल में बने कोरोना के आइसोलेशन वार्ड में महिला से बलात्कार तक फेक न्यूज की देन है।
लॉकडाउन के दौरान फेक न्यूज का ये काला खेल इस कदर बढ़ गया है कि प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा भी इसका निशाना बन चुके हैं। उद्योगपति रतन टाटा के फोटो के साथ सोशल मीडिया पर अखबार की कटिंग के रूप में फैलायी गई ,जिसके बाद फेक न्यूज पर सफाई देने के लिए उद्योगपति टाटा को खुद सामने आकर सच्चाई बतानी पड़ी कि यह उनका बयान नहीं है। इस घटना के बाद श्री टाटा ने लोगों से सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर आने वाली खबरों की सत्यता जांचने की अपील की है।
फेक न्यूज के जरिये झूठ और अफवाहें फैलाने वालों पर रोक लगाना आसान भी नहीं है। सरकार से लेकर बुद्धिजीवी समाज तक इन्हें लेकर बहुत चिंतित हैं। केंद्र सरकार फेक न्यूज पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है। लॉकडाउन के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि किसी फर्जी या गलत खबर के प्रकाशन या प्रसारण से समाज के एक बड़े तबके में गंभीर और अपरिहार्य रूप से दहशत फैलने जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कोरोना वायरस पर तथ्यों की पुष्टि किए बिना किसी खबर के प्रकाशन अथवा प्रसारण पर रोक लगाने की अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने फेक न्यूज के कारण दर्दभरा पलायन होने और कुछ लोगों की मौत का उल्लेख करते हुए उम्मीद जाहिर की कि मीडिया अपनी जिम्मेदारी को लेकर संवेदनशील बना रहेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि दहशत फैलाने वाली अपुष्ट खबरें नहीं चलाई जायेंगी। सबसे बड़ी अदालत ने केंद्र सरकार को फर्जी खबरों के कारण फैल रहे डर को दूर करने के लिए सही जानकारी जनता को उपलब्ध कराने के निर्देश भी दिए।
सोशल मीडिया पर लॉकडाउन और कोरोना को लेकर सच्ची और झूठी सूचनाओं का अम्बार लगा हुआ है। इसमें सच और झूठ को पहचानना इसलिए और भी मुश्किल हो गया है कि झूठ परोसने वाले उसे सच साबित करने के लिए दूसरी घटनाओं और स्थानों के पुराने फोटो व वीडियो भी साथ में अपलोड कर रहे हैं। वीडियो कब और कहां का है, यह जानने के लिए कुछ तकनीकी समझ और समय की आवश्यकता होती है। कम शिक्षित लोगों के लिए यह कुछ कठिन भी हो सकता है। लिहाजा, फोटो और वीडियो को फेक न्यूज में बयान की जाने वाली झूठी कहानी का प्रमाण मानकर अधिकांश लोग सहज ही उसे सच मान लेते हैं। काफी लोग सच को जांचे परखे बिना ऐसे झूठ को आगे फॉरवर्ड करके जाने- अंजाने में फेक न्यूज को बढ़ावा दे रहे हैं। दरअसल, वे उसे सच मान लेते हैं और फेक न्यूज फैलाने वालों के टूल बन जाते हैं। लोगों की यह खतरनाक मासूमियत फेक न्यूज को बहुत बढ़ावा दे रही है।
लोगों के बीच लोकप्रियता के नए आयाम बना चुके सोशल मीडिया की विश्वसनीयता को फेक न्यूज ने तार-तार कर दिया है। सोशल मीडिया पर झूठी सूचनाओं के अम्बार ने सच से जुड़े अखबारों पर पाठकों के भरोसे को और ज्यादा मजबूत बना दिया है। लॉकडाउन के दौरान सी वोटर ने राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण करके दावा किया है कि गलत सूचनाओं के कारण सोशल मीडिया पर लोगों के भरोसे में बहुत कमी आई है। इस सर्वेक्षण के मुताबिक, बामुश्किल ही कभी प्रिंट अखबार पढ़ने वाले 25 वर्ष से कम आयु के युवाओं ने भी सोशल मीडिया पर विश्वास न करने की बात कही है।
किसी दूसरे फोटो या वीडियो के साथ या इनके बिना फेक न्यूज फैलाकर लोगों को गुमराह करना, नफरत के बीज बोना या किसी की छवि को बिगाड़ने बनाने की कोशिशें कानून की नजर में अपराध हैं। जब पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है, तब यह अपराध और ज्यादा गंभीर हो जाता है। यही वजह है कि कोरोना से जंग के इस दौर में फर्जी खबरें फैलाने वालों के खिलाफ उ.प्र., महाराष्ट्र, बिहार जैसे राज्यों में पुलिस सैकड़ों लोगों के खिलाफ मुकदमें दर्ज करने के साथ ही काफी गिरफ्तारियां भी कर चुकी है, लेकिन इस समस्या से निजात पाना इतना आसान नजर नहीं आता। फेक न्यूज को रोकना है, तो हर फोटो या वीडियो को सच का प्रमाण मानने वाली धारणा बदलनी होगी। इसके साथ ही बिना जांचे परखे किसी भी सूचना को सच मान लेने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी। ऐसे किसी झूठ को सच मानना भी खतरनाक है और उसे सच के रूप में फॉरवर्ड करके फैलाना अपराध है। थोड़ी सी सावधानी बरत कर इस अपराध से बचा जा सकता है।
लॉकडाउन के बीच सोशल मीडिया पर बढ़ती फेक न्यूज के दौरान लोगों का अखबारों से जुड़ाव और बढ़ गया है। एवांस फील्ड एंड ब्रांड सॉल्यूशन ने राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के आधार पर दावा किया है कि इस दौरान अखबारों को पढ़ने का समय बहुत बढ़ गया है। अब लोग पहले से दोगुना समय अखबार पढ़ने में लगा रहे हैं।