घटोत्कच भीम और हिडिंबा का पुत्र था। वह बहुत बलशाली था। महाभारत के युद्ध के 14 वे दिन का युद्ध अन्य दिनों के युद्ध से अलग था। अर्जुन ने जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा ली थी, जयद्रथ के वध के बाद सूरज डूबा परन्तु युद्ध की समाप्ति का शंख नहीं बजा तभी कुछ ऐसा तूफान सा आया कि कौरव सेना में अचानक ही भगदड़ मच गई जो अभी-अभी युद्ध भूमि में आया था , घटोत्कच के आते ही पूरी कौरव सेना काँपने लगी। उस दिन का युद्ध समाप्त हुआ तब घटोत्कच जाकर सभी पांडवों से मिलते है और सभी पांडव और श्री कृष्णा के कहने पर घटोत्कच कर्ण से युद्ध करने गया तो दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ। घटोकत्च की वीरता देखकर सभी कौरव डर गये तब दुर्योधन कर्ण के पास जाकर कहता है कि मित्र, ‘यदि तुमने आज इन्द्र की दी हुई शाक्ति जो अर्जुन को मारने के लिये तुमने रखी है उसका प्रयोग नहीं किया तो ये हम सबको मार डालेगा’’ इसलिए शक्ति का प्रयोग कर इस राक्षस को मार डालो। दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने घटोत्कच पर दिव्य शक्ति छोड़ दी जो बड़ी जोर से घटोत्कच की छाती पर जा लगी। घटोत्कच का शरीर बहुत विशालकाय पर्वत के समान था, मरते समय उसने अपना लम्बा चौड़ा शरीर से जिससे शत्रुओं की एक अ़क्षौहिणी सेना नष्ट हो गई और अर्जुन का तो संकट टल गया लेकिन भीम का पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ जब पांडवो को यह सूचना मिली तो वह बहुत दुखी हुए लेकिन कृष्ण प्रसन्न थे क्योंकि घटोत्कच का तो वध हुआ था किन्तु घटोत्कच ने अर्जुन को बचा लिया था।
भीम पुत्र घटोत्कच ने प्राणोत्सर्ग कर पाडंवों की जीत का मार्ग प्रशस्त किया
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