महा शिवरात्रि का महत्व

महा शिवरात्रि का महत्व
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आर्टिकल
राजीव थपलियाल
यह तो हम सभी लोग बहुत अच्छी तरह से जानते ही हैं कि, हमारे देश में महाशिवरात्रि का पवित्र पर्व अन्य त्यौहारों एवं पर्वों की तरह बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। भगवान आशुतोष को खुश करने का यह शुभ दिन सभी हिन्दू भक्तों के लिए खास होता है।इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है।

हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को सिर्फ शिवरात्रि कहा जाता है। लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
महाशिवरात्रि हिंदुओं का एक बहुत ही लोकप्रिय धार्मिक त्यौहार है, जिसे हिंदू धर्म के प्रमुख देवता महादेव अर्थात् शिवजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शिवभक्त एवं भोलेनाथ में श्रद्धा रखने वाले लोग व्रत-उपवास रखते हैं और विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना करते हैं। महाशिवरात्रि को लेकर भगवान शिव से जुड़ी कुछ मान्यताएं प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस विशेष दिन के मौके पर ही ब्रह्मा के रूद्र रूप में मध्यरात्रिको भगवान शंकर का अवतरण हुआ था। वहीं दूसरी तरफ यह भी मान्यता है कि, इसी दिन भगवान शिव ने तांडव कर अपना तीसरा नेत्र खोला था और ब्रह्मांड को इस नेत्र की ज्वाला से समाप्त किया था। इसके अलावा कई स्थानों पर इस दिन को भगवान शिव के शुभ विवाह से भी जोड़ा जाता है और यह माना जाता है कि, इसी पावन दिन पर भगवान शिव और माँ पार्वती का विवाह हुआ था। वास्तव में महाशिवरात्रि भगवान भोलेनाथ की आराधना का ही पर्व है,धर्मप्रेमी लोग महादेव का विधि-विधान के साथ पूजन अर्चन करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन शिव मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो शिव के दर्शन-पूजन कर खुद को सौभाग्यशाली मानती है।
महाशिवरात्रि के दिन शिवजी का विभिन्न पवित्र वस्तुओं से पूजन एवं अभिषेक किया जाता है और बिल्वपत्र, धतूरा, अबीर, गुलाल, बेर, उम्बी आदि अर्पित किया जाता है। भगवान शिव को भांग बेहद प्रिय है अत: कई लोग उन्हें भांग भी चढ़ाते हैं। इस मौके पर भक्तजनों द्वारा दिन भर उपवास रखकर पूजन करने के बाद शाम के समय फलाहार किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि, भारत वसुन्धरा में हिंदुओं के तैंतीस करोड़ देवी-देवता हैं जिन्हें वे बड़ी श्रद्धा एवं विश्वास के साथ मानते तथा पूजते हैं परंतु उनमें से सबसे प्रमुख स्थान भगवान शिव का माना जाता है। भगवान शिव को मानने वालों ने शैव नामक सम्प्रदाय चलाया, शैव सम्प्रदाय के अधिष्ठाता एवं प्रमुख देवता भगवान शिव ही माने जाते हैं।लोगों की मान्यता है कि,सभी भगवान इतनी जल्दी खुश नही होते हैं, जितनी जल्दी भगवान शिव खुश हो जाते हैं।शास्त्रों और पुराणों में भगवान शिव के 108 नाम हैं।भगवान शिव को शंकर,भोलेनाथ, पशुपति, त्रिनेत्र,पार्वतिनाथ आदि अनेक नामों से जाना व पुकारा जाता है। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव सभी जीव-जन्तुओं के स्वामी एवं अधिनायक हैं। ये सभी जीव-जंतु, कीट-पतंग भगवान शिव की इच्छा से ही सभी प्रकार के कार्य किया करते हैं। शिव-पुराण के अनुसार भगवान शिव वर्ष में छ: मास कैलाश पर्वत पर रहकर तपस्या में लीन रहते हैं।उनके साथ ही सभी कीड़े-मकोड़े भी अपने बिलों में बन्द हो जाते हैं।उसके बाद छ: मास तक कैलाश पर्वत से उतर कर धरती पर शमशान घाट में निवास किया करते हैं। इनका धरती पर अवतरण प्राय: फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को हुआ करता है। अवतरण का यह महान दिन शिवभक्तों के लिये बड़ा महत्वपूर्ण है। महाशिवरात्रि के पावन दिन पर शिव मंदिरों को बड़ी अच्छी तरह से सजाया-संवारा जाता है। भक्तगणों द्वारा सारा दिन,निराहार रहकर व्रत, उपवास किया जाता है। अपनी सुविधा अनुसार सायंकाल में वे फल, बेर, दूध आदि लेकर शिव मंदिरों में जाते हैं। वहां दूध मिश्रित शुद्ध जल से शिवलिंग को स्नान कराते हैं।तत्पश्चात शिवलिंग पर फल,पुष्प व बेर तथा दूध भेंट स्वरुप चढ़ाया करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करना बड़ा ही पुण्यदायक एवं फलदायक माना जाता है।

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