अभी कुछ समय पहले उत्तरप्रदेश में मजदूरों के लिए काग्रेंस पार्टी द्वारा एक हजार बसें उनके गृहक्षेत्रों में भेजने के लिए उपलब्ध कराने का पत्र उत्तर प्रदेश सरकार को भेजा था। कांग्रेस महासचिव तथा उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका वाड्रा ने परंपरागत प्रिंट मीडिया, इलैक्ट्रानिक मीडिया, तथा सोशल मीडिया के माध्यम से भी उत्तरप्रदेश सरकार पर आरोप लगाया था कि वह मजदूरों को उनके गृहराज्यों को भेजने को लेकर गंभीर नही है तथा उत्तरप्रदेश सरकार को इन प्रवासी मजदूरों के हितों की कोई भी चिंता नही है, इसके साथ ही काग्रेंस पार्टी ने उत्तर प्रदेश सरकार पर आरोप मढ़ दिया कि कांग्रेस पार्टी की ओर से प्रवासी मजदूरों को उनके गृहराज्यों तक भेजने के लिए कांग्रेस पार्टी एक हजार बसें भेजना चाहती है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार उन्हें राज्य में प्रवेश करने की अनुमति नही दे रही है। यहां अगर तथ्यों की वास्तविकता को देखा परखा जाए तो कांग्रेस पार्टी भी मजदूरों की मदद करने की जगह मजदूरों के मुद्दें को भुनाने की रणनीति पर चल रही थी। अगर कांग्रेस पार्टी को वास्तविक रूप में प्रवासी मजदूरों की चिंता होती तो वह एक निश्चित धनराशि का चेक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के राहत कोष में जमा करवाती तथा तब उत्तर प्रदेश सरकार से कहती कि कांग्रेस ने प्रवासी मजदूरों को उनके गृहराज्य लौटाने के लिए इतनी घनराशि दी है तथा सरकार इसका उपयोग कर प्रवासी मजदूरों को उनके गृहराज्यों को भेजे।
जब उत्तर प्रदेश सरकार ने कांग्रेस पार्टी से उन एक हजार बसों के संदर्भ में तथ्यात्मक जानकारी मांगी तो उसमें कथित रूप से कई नम्बर दुपहिया वाहनों के और थ्री व्हीलर और एम्बुलेंस और ट्रकों के भी बताये गये तथा कई नम्बर तो भ्रामक बताये गये खैर इसको लेकर वास्तविक सच्चाई तो उत्तरप्रदेश सरकार तथा काग्रेंस पार्टी ही बेहतर बता पायेगी, लेकिन प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर इस तरह से असंवेदनशीलता कहीं से भी उचित नही समझी जा सकती है। कांग्रेस पार्टी ने देश पर लगभग साठ साल तक शासन किया है उसे कोरोना वायरस संक्रमण काल में लाॅक डाउन के चलते उत्पन्न हालातों की गंभीरता को समझना चाहिए वहीं उत्तर प्रदेश सरकार को जहां मजदूरों को राहत दिलाने के उपायों मे समय लगाना चाहिए था, वह कांग्रेस पार्टी की रणनीति में कुछ समय के लिए उलझ गई तथा दोनों और से तेरी चिट्ठी मेरी चिट्ठी का खेल चलता रहा तथा प्रवासी मजदूर परेशान होते रहे।
वहीं प्रवासी मजदूरों पर इसी तरह की राजनीति महाराष्ट्र मे भी आरम्भ हो गई है विगत दिवस महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने रेलमंत्री पीयूष गोयल पर आरोप लगाया कि महाराष्ट्र सरकार प्रवासी मजदूरों के लिए अगर चालीस ट्रेनों की मांग करती है तो महाराष्ट्र सरकार को प्रवासी मजदूरों के लिए बीस ट्रेन ही उपलब्ध कराई जा रही हैं। शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जैसें ही मीडिया के सामने आकर यह बयान दिया केन्द्रीय रेल मंत्री विजय गोयल ने प्रिंट और सोशल मीडिया के माध्यम से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से कहा कि रेल मंत्रालय महाराष्ट्र सरकार को एक सौ पच्चीस ट्रेने कल ही उपलब्ध करवा देगा उन्होनें महाराष्ट्र सरकार से इन ट्रेनों मे भेजे जाने वाले मजदूरों की लिस्ट रेलवे को उपलब्ध करवाने को कहा इसके साथ ही केन्द्रीय रेलमंत्री ने विगत दिवस महाराष्ट्र सरकार पर रेलवे को प्रवासी मजदूरों की लिस्ट उपलब्ध नही करवाने का आरोप भी लगा दिया।
मेरा अनुरोध है की महाराष्ट्र सरकार अभी भी अगले एक घंटे में कितनी ट्रैन, कहाँ तक और पैसेंजर लिस्टें हमें भेज दें। हम प्रतीक्षा कर रहे है और पूरी रात काम कर कल की ट्रेनों की तैयारी करेंगे। कृपया पैसेंजर लिस्टें अगले एक घंटे में भेज दें।
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) May 24, 2020
अब प्रश्न यह उठता है कि विश्व व्यापी कोरोना वायरस संक्रमण के समय मे राजनैतिक दलों का यह आचरण क्या कहीं से भी उचित ठहराया जा सकता है और कुछ राजनैतिक दलों का यह व्यवहार कोरोना वायरस संक्रमण के काल में बेहद हैरान कर जाता है। यहां आवश्यकता इस बात की होनी चाहिए थी कि लम्बे लाॅक डाउन के बाद इन असहाय मजदूरों को किस तरह से फौरी राहत उपलब्ध कराई जा सके, लेकिन इसके उलट मजदूरों के मुद्दे पर जमकर राजनीति चमकाने का प्रयास किया जा रहा है।
राजनैतिक दलों का कार्य निश्चित रूप से राजनीति करना है लेकिन राजनीति करने का यह अवसर उचित नही है, इस समय तो चाहे कोई राजनैतिक संगठन हो, सामाजिक संगठन हो अथवा निजी तौर पर जिससे जो सम्भव हो वह मदद इन जरूरतमंदो को उपलब्ध कराई जानी चाहिए और मजदूरों के मुद्दे पर कोई भी राजनीति कम से कम इस महामारी के समय में नही होनी चाहिए।।विभू ग्रोवर।।