पत्रकारिता का संक्रमण काल

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विभु ग्रोवर 

एक बार मुझे एक इस तरह के पत्रकार के संदर्भ में पढने को मिला जो काॅपी से चार पन्ने निकालकर उनमें हाथ से लिखकर जनपक्षीय मुद्दों पर समाचार बनाते और लिखते हैं और सच कहूं तो यही वो असली पत्रकारिता हैं, जिनके मिशन को धनाभाव भी प्रभावित नही कर सकता। हालांकि यह तय है कि इनकी लेखनी और उसमें उठाये जाते रहे मुद्दे बहुत अधिक लोगों तक नही पंहुच रहें है, लेकिन ये काॅपी के चार पन्नों मे हाथ से लिखकर बनाये गये। जनपक्षीय समाचार उन लोगों के मुंह पर तमाचा तो हैं, जो पैसे के दम पर सच्ची और जनपक्षीय खबरों को दबाकर अपने स्वार्थ के लिए पत्रकारिता जैसें आदर्श पेशे को आज बाजार में ले आये हैं।

एक घटना जिसको लेकर पत्रकारों ने भी अपने अपने मानसिक स्तर से इस पर अपने हिसाब से लेख लिखे थे, वह घटना थी दिल्ली से लेकर बद्रीनाथ के माणा गांव तक और देहरादून से पिथौरागढ़ तक एक नये अखबार की लाॅचिग के बड़े बड़े होर्डिंग लगाये गये थे। जिसकी फण्डिग रियल स्टेट, शराब व्यवसाय से जुड़े कुछ लोग कर रहे थे, सूत्र बताते हैं कि करोड़ो करोड़ रुपये इन होर्डिगों को लगाने में खर्च हुए थे और यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि इतना भारी भरकम रकम लगाई कहां से गई थी और यह अखबार किस उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रकाशित किया जाना था, खैर इस समाचार पत्र का प्रकाशन लम्बा नही चल पाया। आज कुछ व्यावसायिक घराने सत्तारूढ दलों से अपने व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अखबार और समाचार चैनल चला रहे हैं।

इनका उद्देश्य केवल मीडिया की आड़ मे अपने हित साधने का होता है। वहीं मिशन पत्रकारिता आज अभाव और पैसे की चकाचौंध में हताशा और निराशा की स्थिति में है। चाटुकारिता के दम पर कुछ चालक तथाकथित पत्रकार भी आजकल लाइमलाइट में है ये कुछ चतुर प्रवृत्ति के लोग अपने को पत्रकार बताकर इसकी आड़ में कई गोरखधन्धें करते है और पुलिस थानो के आसपास मंडराते नजर आते हैं। वहीं कुछ समाचार पत्रों के मालिक अपने पत्रकारों को विज्ञापन जुटाने के काम में लगा देते हैं और वास्तविक पत्रकार आज भी अपनी लेखनी से जुटे तो हैं अपने मिशन पर लेकिन पैसा और ताकत के अनैतिक गठजोड़ ने इन वास्तविक पत्रकारों को सामने चुनौतियों की दीवार भी खड़ी कर दी है। आज सच पर झूठ का प्रभाव अधिक है तथा पत्रकारिता भी इस पैसे और ताकत के अनैतिक गठजोड़ से संक्रमण के दौर से गुजर रही है। आज बड़े समाचार पत्रों समाचार चैनलों में चाहे जिस दल की सरकार सत्ता मे आती है उसकी चरणवंदना प्रारम्भ हो जाती है। और इसके पीछे उद्देश्य होता है अपने सही-गलत कार्यों के लिए राजनैतिक कृपा की प्राप्ति।

खैर आज के दौर की पत्रकारिता संक्रमण काल से गुजर रही है और स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी जैसें पत्रकार आज इस लिए भी आगे नही आ पाते कि आज सच को पैसे और ताकत ने कुछ समय के लिए भले ही सही खामोश कर दिया है। झूठ हाथों हाथ बिक रहा है, आज बाजारवाद मीड़िया पर भी बेहद हावी है और झूठी मनगढंत और प्रायोजित खबरे अपनी टीआरपी बढाने के मकसद से चलाई जा रही हैं और हालांकि इसका दूरगामी प्रभाव भी अब नजर आने लगा है लोग सोशल मीडिया का भी उपयोग अब खबरों तक पंहुच बनाने के लिए करने लगे हैं और सोशल मीड़िया का समाचारों को विश्वसनीय ढंग से प्रसारण अब परंपरागत प्रिंट और समाचार चैनलों के आगे एक बहुत बड़ी चुनौती पेश कर चुके हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि यहां खबरों की दुनिया में टिके रहने के लिए अब परंपरागत मीडिया तथा सोशल मीडिया में जो अधिक विश्वसनीयता दिखायेगा जीत उसकी ही होगी और परंपरागत मीडिया तथा सोशल मीडिया के बीच वर्चश्व की इस जंग में अगर आम जनता के जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों पर जो अधिक जुड़ाव प्रदर्शित करेगा आखिर मे वही इस प्रतिस्पर्घा मे टिक पायेगा, आशा की जानी चाहिए कि समुद्र मंथन की तरह इस संक्रमण काल से गुजरती पत्रकारिता में भी अमृत निकलेगा और इस मुश्किल दौर का अंत होगा। 

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